विमर्श

वो मुस्कुरा देती है

हर बात पर मुस्कुरा देती है औरत अपने गम को कुछ युं छुपा लेती है बच्चों के बिगड़ने का घर के उजड़ने का विधवा है तो पति को खा जाने

मुर्दा भीड़ का संताप

रोशनी उतर आयी है पेड़ों के ऊपर से नीचे घास पर मेरे तलवों से मेरे ख़ून रिसते होंठों पर, मैं महसूस कर रही हूँ सैकड़ों कीड़े घिसट रहे हैं मेरी

पितृसत्ता तुम्हारी रीढ़ कौन है

आसमान के घर से एक बड़ा सा पत्थर मोहल्ले के बीचों -बीच गिरा देखते ही देखते वह शीर्ष मंच पर आसीन हो गया औरतें जो साहसी सड़कें बनकर चल रही

Fault in Our Stars से दिल बेचारा तक

अमेरिकन उपन्यासकार है John Michael Green, इन्होंने सन 2012 में एक उपन्यास लिखा Fault in Our Stars नाम से। कथा के केंद्र में मूलतः कैंसर सरवाइवल हैं, उपन्यास बड़ा पढ़ा

उंगलियों के पोरों पर दिन गिनती

उंगलियों पर गिन रही है दिन खांटी घरेलू औरत सोनू और मुनिया पूछते हैं ‘क्या मिलाती रहती हो मां उंगलियों की पोरों पर’ वह कहती है ‘तुम्हारे मामा की शादी

क्या तुम जानते हो

क्या तुम जानते हो पुरुष से भिन्न एक स्त्री का एकांत घर-प्रेम और जाति से अलग एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन के बारे में बता सकते हो तुम ।

भागी हुई स्त्रियाँ

“इधर उधर मुँह मारने वाली” जैसे ताने सुनने वाली भागी हुई स्त्रियाँ दरअसल पति की प्रेमिका के जूठन पर थूक रही होती हैं। “इस बार भी कुलक्षणी को जन्मा तो

बदलना क्यूं है?

सांवली और स्याह रंगत वाली लड़कियों को गोरेपन की क्रीम बेचने वाला बाला (आयुष्मान खुराना) जब स्टेज पर अचानक यह कह उठता है कि हमें बदलना क्यूं है, तो सब

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