भागी हुई स्त्रियाँ


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36
“इधर उधर मुँह मारने वाली”
जैसे ताने सुनने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
पति की प्रेमिका के जूठन पर थूक रही होती हैं।

“इस बार भी कुलक्षणी को जन्मा तो गाड़ देंगे”
ऐसा सुनने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
सभ्यता को बचाने की क़वायद में दौड़ रही होती हैं ।

पीठ पर मिले स्याही के निशान
छिपाने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
संस्कारों के बदबुदार लबादों को जला रही होती हैं।

पायल की रुनझुन में चुटकियाँ बजाते पहाड़े
याद रखने वाली स्त्रियाँ
दरअसल
पढ़ लिख कर पुरानी बेड़ियों को तोड़ रही होती हैं।

तोड़ने वाली,
जलाने वाली,
दौड़ने वाली
भागी हुई सभी स्त्रियाँ
दरअसल
समाज की कुरीतियों पर लात मार रही होती हैं।

शायद इसलिए समाज के लिए
भागी हुई स्त्रियाँ
मारी हुई स्त्रियों के अपेक्षाकृत अधिक अभागी होती हैं।

और तब भागी हुई स्त्रियों का अभागा होना,
समाज को मरने से बचा लेता है।

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: