भागी हुई स्त्रियाँ


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“इधर उधर मुँह मारने वाली”
जैसे ताने सुनने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
पति की प्रेमिका के जूठन पर थूक रही होती हैं।

“इस बार भी कुलक्षणी को जन्मा तो गाड़ देंगे”
ऐसा सुनने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
सभ्यता को बचाने की क़वायद में दौड़ रही होती हैं ।

पीठ पर मिले स्याही के निशान
छिपाने वाली
भागी हुई स्त्रियाँ
दरअसल
संस्कारों के बदबुदार लबादों को जला रही होती हैं।

पायल की रुनझुन में चुटकियाँ बजाते पहाड़े
याद रखने वाली स्त्रियाँ
दरअसल
पढ़ लिख कर पुरानी बेड़ियों को तोड़ रही होती हैं।

तोड़ने वाली,
जलाने वाली,
दौड़ने वाली
भागी हुई सभी स्त्रियाँ
दरअसल
समाज की कुरीतियों पर लात मार रही होती हैं।

शायद इसलिए समाज के लिए
भागी हुई स्त्रियाँ
मारी हुई स्त्रियों के अपेक्षाकृत अधिक अभागी होती हैं।

और तब भागी हुई स्त्रियों का अभागा होना,
समाज को मरने से बचा लेता है।

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