अदृश्य में ही था प्रेम का विस्तार – बहादुर पटेल


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हमारे खून में
सदियों से दौड़ लगाता रहा है प्रेम
घृणा के लिए नहीं थी कोई जगह
धीरे-धीरे प्रेम ने ही बनाया
उसके लिए रास्ता

काँटों ने ही बनाई फूल के लिए जगह
और फूल ने ही दी अभिव्यक्ति के लिए भाषा
मौन ने ही रची सबसे समृद्ध भाषा
इन सबसे बना एक सुन्दर दृश्य
दृश्य ने ही जन्म दिया अदृश्य को
अदृश्य में ही था प्रेम का विस्तार
दिखाई दिए हम जहाँ
वहीं से भागकर हमने बचाया प्रेम

जिस जगह हम कर रहे थे प्रेम
वहाँ प्रकाश अवरोध की तरह आया
आखिर अंधकार ने हमे शरण दी
इसी में हमने अपने भीतर की आग जलाई
और एक दूसरे को दूर तक देखा

धड़कनों का भी एक संगीत था
जो हमारी लय को तोड़ रही थी
टूटी हुई लय से एक दूसरे को वाद्य बनाया
और हमने अपने लिए
अपनी ही तरह का राग बनाया

थकान के एक टीले पर
हम हाँफते हुए चढ़े
देर तक वहाँ सुस्ताये
वहीं अपने लिए एक घर बनाया
उसी में रहते हुए
एक दूसरे को शुक्रिया कहा
प्रेम बिखेरने के लिए
बिखरा हुआ प्रेम
ऐसा उगा कि सारी पृथ्वी हरी हो गयी
इसीलिए तुम्हें हरा रंग पसन्द आया
चूँकि ऊपर नीला आकाश था
सो मुझे नीला रंग भा गया

इतने सारे रास्तों पर था इससे पहले
एक जगह तुम खड़ी मिली
बस उसी रास्ते पर अब निकल जाता हूँ दूर तक।

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