कहने का एक मिज़ाज़ होता है एक जायका वही सुधीर का भी है ज़िंदगी की मसरूफियत में वे ख़्वाहिशों के क़ासिद है जो हमारे ख़त कागज़ों में इकठ्ठा कर रहा है उनकी नज़्मे उस विरासत को एक्स्टेंड करती हैं जहाँ वे आम आदमी की “रीच” में नजर आती हैं किसी मुश्किल ज़ुबान से बचते हुए वे ज़ायका बरकरार रखते हैँ यही उनका हुनर है मसलन……
रजाईयों में दुबके ख़्वाब की पिक्चर भी चलती हो…
बस ऐसी सुबह चिड़ियों का अलारम सेट कर देना,
रोजमर्रा की चीज़ो मामूली सी चीज़ो में ज़िंदगी की ख़ूबसूरती ढूंढना उनकी फितरत है, कैफियत भी.. यही उनका आइडेंटी मार्क है। बिना पेचीदा हुए तजुर्बो को देखने की एक सलाहियत है। जहाँ मामूली चीज़ो में तअल्लुक़ ढूंढने का शगल है उनके नये मानें हैं, उनके लफ्ज़ हमारी आपकी जबान में बोले गए लफ्ज़ हैं जिनका जायका सही जगह पर बैठने से बढ़ता है।
सबसे ख़ास बात वे कम्यूनिकेट करते हैं, लिखने वाले का सबसे बुनियादी काम यही है, वे नज़्मों के जरिये छोटी- छोटी कहानियाँ सुनाते हैँ, उन कहानियों को सुनकर आप मुस्कुरातें हैँ l
यहीं पर मैथ्स की कॉपी के पन्नों से बनाकर नाव छोड़ी थी…
के हर एक मैच के दौरान पानीपत हुआ जाता था ये मैदान पीला सा…
अपन ओपन किया करते थे बैटिंग टीम से अपनी…
उधर से सनसनाती गेंद तोतु की गुज़रती थी..
तोतू दरअसल बिट्टू भी हो सकता है ,बिल्लू भी, उसका कोई भी नाम दे दो पर वो हमारी आपकी ज़िंदगी में मौजूद है। यही उनके सिग्नेचर है जो आज़ाद नज़्म को और आसान करते है उनके तस्सव्वुर में मुलामियत की कैफियत है। उम्र के इस सिरे से देखे जानी वाली दुनिया हैl
काम से जब भी लौटता हूँ घर
वो सड़क रास्ते में पड़ती है..
जहाँ आकर के मुड़ गया था कोई…
कई दफे ऐसा लगता है जैसे कोई छोटा सा ख़त है जिसमे लिखने वाले को थोड़े और लम्बे ख़त लिखे जाने की हिदायत दी जानी चाहिए। उसे हम सबकी बैचेनी का सबब जो मालूम है
शहर में बारिशें यूँ थम गयी हैं
के जैसे ट्रेन आउटर पर खड़ी हो
वे ज़िंदगी की बेशुमार फ़िक्रों और गैर-जरूरी और जरूरी मसरूफ़ियत के दरमियान इतवार से मालूम होते है।
तुम्हारी चिट्ठियाँ मिलती नहीं अब
मोहल्ले लापता है इस शहर में !!
उनकी नज़्मे दरअसल ज़िंदगी का रोज़ानमचा हैं।