जब लड़कियां
देख रही होती हैं
पहले प्रेमी का चौथा ख्वाब
औरतें अपने सपनों में
घर दफ्तर का फेरा लगाते
थकी हारी
बेखुदी में
चूल्हे पर चढी अदरक की
चाय उफनाते
पति को समझा रही होती हैं
कि देर तरकारी लेने में हो गई
वर्ना वक्त से घर पहुंच जाना था
बच्चियां
पीली नीली सतरंगी फ्राक में
सितौलिया पर निशाना लगाती
किनारे खड़े अंकल की नज़र में
आ रही होती हैं
दहशत में पसीना पसीना
बगल में सोए अपने बाबा से ही घबरा रही होती हैं
ठीक उसी वक्त
आधी नींद से जागी अम्मा
लगा रही होती हैं हिसाब
जीवन में कितने रिश्ते
नफ़े के हिस्से आए
कितने नुकसान में गए
देख रही होती हैं
जागी आंखों से वो सारे अधूरे ख़्वाब
एक सपना स्कूल की पढाई पूरी कर पाने का
दूसरा सपना, देहरी के बाहर
ठाकुर की लड़की से बेहिचक बतियाने का
तीसरा सपना,
धानी चूनर में निपट अकेले
शहर घूम आने का
चौथा सपना, काका
की तरह खेत में ट्रैक्टर चलाने का
पांचवा सपना
हिम्मत करके
अपने ईश्वर से ये कह पाने का
बेटियों के जीवन से
बस, ब्याह की उम्र हटा दो ना