देना


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जिसने मेरा घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर
देना कि बाहर निकलने को चले
पर निकल न पाए

जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु न देना

जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना
और तूफ़ान उठाना

जिनसे मैं नहीं मिला
उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़ आना
कि बराबर संसार में आता रहूँ

अगली बार
इतना प्रेम देना
कि कह सकूँ प्रेम करता हूँ
और वह मेरे सामने हो।

‘Dena’ Hindi poem by Naveen Sagar

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