दुनिया थोड़ी सुंदर लगती रहे

पिता कभी नहीं कहते
मेरे पास पैसे नहीं हैं
माँ ने कभी नहीं कहा
मेरी तबियत खराब है
मैंने कभी नहीं कहा
आज खाने में नमक कम है
शायद सच ना बोलने से
दुनिया थोड़ी सुंदर बनी रहती है
कविता कभी किसी से नहीं कहती
पृथ्वी वासनाओं का सुंदर विस्तार है
मन कभी अपने गुण नहीं बताता
आत्मा कभी नहीं कहती
मोक्ष मन को मिली भिक्षा है
उसकी उपलब्धि नहीं
फूल कभी नहीं बताते
उनके चेहरे पर खिला रंग
उनका लहू है
जो तितलियों के काटने से बहा है
किसान कभी नहीं बताते
खेती करना उनकी मज़बूरी है
और किसी दिन मज़बूर होकर
छोड़ देंगे खेती
सुंदर इमारतें कभी नहीं बताती
उन्होंने पीया है मजदूरों का गाया गीत
और कोई मोल नहीं दिया उसका
पानी कभी नहीं बताता
उसकी नमी
पहाड़ों के हृदय से लिया गया उधार है
सड़कें कभी नहीं बताती
इन पर चलकर बस हम यात्रा नहीं करते
पृथ्वी भी पहुँचती रहती है कहीं
हमारे साथ चल कर
बहुत दूर आ गई है पृथ्वी
अब लौटना चाहती है
मगर लौट नहीं सकती
लोग इसे सभ्यता का विकास कहते हैं
हमारी देह
अनंत यात्राओं का वृतांत है
हमारी आँखें कुआं हैं
जो हमारे पूर्वजों ने
पानी की खोज में खोदा था
हमारे आँसू
समुद्र मंथन से निकला अमृत है
मगर हमारे पूर्वज अब तक अतृप्त
वो तमाम पत्थर
जिन्हें हम ठोकर मार कर आगे बढ़ जाते हैं
उनके भीतर से निकला है अग्नि का सूत्र
वो नहीं बताती अपना दुःख
कि दुनिया में कितनी आग है
कितनी कम है रौशनी मगर
क्या तुम्हारे आंचल ने तुम्हें कभी बताया है
कितने युद्ध लड़े गए
कितने लोग शहीद हुए
बांटे गए कितने देश
कपास की सियासत में
हाँ ! तुम्हारा आँचल
एक युद्ध का विराम चिन्ह है
मैं इसे ओढ़ कर
एक अनंत निद्रा में लीन हो जाऊंगा
मृत्यु कोई उपलब्धि नहीं है
ना कोई प्राप्ति
ना कोई संदेश है ना उपदेश
कोई विशिष्टता नहीं है इसमें
मृत्यु एक सूक्ति है
जिसे हम जीते जी न सुनते हैं ना पढ़ते हैं
इसीलिए कि दुनिया थोड़ी सुंदर लगती रहे।

निरंजन कुमार की अन्य रचनाएँ।

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: