परसाई के पंच-2


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1. साहित्य में बंधुत्व से अच्छा धंधा हो जाता है।

2. जवान आदमी को दुखी देखने से पाप लगता है। मगर मजबूरी में पाप लग रहा है। बेकारी से दुखी जवानों को सारा देश देख रहा है और सबको पाप लग रहा है।

3. घूस से पारिवारिक जीवन सुखी होता है।

4. जिस दिन घूसखोरों की आस्था भगवान पर से उठ जाएगी, उस दिन भगवान को पूछ कोई नहीं रहेगा।

5. यह जमाना ही किसी समर्थ के घर बैठ जाने का है। वह तो औरत है। तू राजनीति के मर्दों को देख। वे उसी के घर बैठ जाते हैं, जो मंत्रिमंडल बनाने में समर्थ हो।

6. शादी इस पार्टी से हुई मगर मंत्रिमंडल दूसरी पार्टी वाला बनाने लगा, तो उसी की बहू बन गए।

7. राजनीति के मर्दों ने वेश्याओं को मात कर दिया। किसी-किसी ने तो घण्टे भर में तीन-तीन खसम बदल डाले। आदमी ही क्यों, समूचे राष्ट्र किसी समर्थ के घर बैठ जाते हैं।

8. पैसे में बड़ी मर्दानगी होती है। आदमी मर्द नहीं होता, पैसा मर्द होता है। अमरीका के अच्छे-अच्छे जवान टापते रह गए और जैकलिन को ले गया बूढ़ा अरबपति ओनासिस।

9. सदियों से यह समाज लिखी पर चल रहा है। लिखाकर लाये हैं तो पीढियां मैला ढो रही हैं और लिखाकर लाये हैं तो पीढियां ऐशो-आराम भोग रही हैं।

10. लिखी को मिटाने की कभी कोशिश ही नहीं हुई। दुनिया के कई समाजों ने लिखी को मिटा दिया। लिखी मिटती है। आसानी से नहीं मिटती तो लात मारकर मिटा दी जाती है।

11. हम पूरे मुंह से बोलते हैं , मगर बुद्धिवादी मुंह के बाएं कोने को जरा सा खोलकर गिनकर शब्द बाहर निकालता है। हम पूरा मुंह खोलकर हंसते हैं, बुद्धिवादी बायीं तरफ के होंठों को थोड़ा खींचकर नाक की तरफ ले जाता है।होंठ के पास के नथुने में थोड़ी हलचल पैदा होती है और हम पर कृपा के साथ यह संकेत मिलता है कि -आई एम एम्यूज्ड! तुम हंस रहे हो, मगर मैं सिर्फ थोड़ा मनोरंजन अनुभव कर रहा हूँ। गंवार हंसता है, बुद्धिवादी सिर्फ रंजित हो जाता है।

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