इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है
एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है
निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी
पत्थरों से ओट में जा-जा के बतियाती तो है
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है
‘Iss Nadi Ki Dhaar Se Thandi Hawa Aati To Hai’ by Dushyant Kumar