इससे फर्क नहीं पड़ता है – शिफाली


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तुम लड़के थे
इतना फर्क ही काफी था
90 के उत्तरार्ध में मध्यमवर्गीय परिवेश से आई
हम लड़कियों के लिए
दो लड़कियों का एक दोस्त
वो भी खान
ये तो कयामत की बात हुई
जान पहचान तक ठीक था
ये लड़के दोस्ती के लिए नहीं होते
सबने समझाया…
और तुम
तुमने हर बार उस यकीन पर हथौड़ा चलाया
क्यूं लाइब्रेरी से तुम अपने नाम पर
हमारे सब्जेक्ट की किताबें इश्यू कराते थे
क्यूं सस्ती किताबों के लिए
पुराने भोपाल की गलियां दिखाते थे
क्यूं तुमने एहतियात रखी
कहा, उस सूने रास्ते से मत जाना
क्यूं कॉलेज में हुए बवाल पर
तुम डटे रहे अकेले हमारे साथ
हिम्मत बने, कहा मत घबराना

हम ठेठ पंडित
तुम पांच वक्त के नमाज़ी
हमने तुमने
हर दिन कितनी कितनी सरहदें लांघी
तुम मेरी जिद पर मंदिर की ड्योड़ी तक आए
मैंने तुम्हारी खुशी के लिए
दरगाह के तबर्रूक खाए
जब मेरा भगवान नाराज़ सा लगा
मैने तुम्हारे अल्लाह के यहां अर्जी लगाई
तुम्हारी अम्मी बीमार थी
तुमने पांच मंगल
बजरंग बली को मीठी पूड़ी चढाई

विज्ञान के विद्यार्थी हम
पूछते भी किससे धरम की परिभाषा
हमने तो जूलोज़ी की मैडम कल्पना से पढा था
औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है
हिंदू हो मुस्लिम हो
इससे फर्क नहीं पड़ता है

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