कल जब तुम – अमिताभ बच्चन


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कल जब जामिया विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में घुसकर
बच्चों को तुम बेरहमी से पीट रहे थे
जसीडीह के किसी गांव में पैदा हुआ बनारस में रहने वाला एक बुजुर्ग कवि
बड़े जोश से कोलकाता में पढ़ रहा था
एक बंगालन लड़की के प्यार में डूबी अपनी बहुत पुरानी कविता

कल जब जामिया विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में घुसकर
बच्चों को तुम बेरहमी से पीट रहे थे
एक मामूली आदमी अपने ही विभाग के एक बड़े अधिकारी से बता रहा था
कि उसके दोनों बड़े बेटों ने दूसरे धर्म की लड़कियों से ब्याह रचा लिया
हम क्या करें साहब

कल जब जामिया विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में घुसकर
बच्चों को तुम बेरहमी से पीट रहे थे
बुलंदशहर का एक आदमी बड़े गर्व से बता रहा था
कि उसे अपनी मराठी बहू की जाति का नहीं पता
और हां, वह जिस बिहारी को ये सब बता रहा था
उसे अपने मराठी दामाद की जाति का पता नहीं था

कल जब जामिया विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में घुसकर
बच्चों को तुम बेरहमी से पीट रहे थे
बंगाल का एक पांचवी पास आदमी जो गेस्ट हाउस का स्वीपर है
और जिसका नाम मेघनाथ सरदार है
बड़ी शान और खिली हुई मुस्कान के साथ बता रहा था
कि हां, वह मेघनाथ साहा को जानता है
वे बहुत बड़े वैज्ञानिक थे

कल जब जामिया विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में घुसकर
बच्चों को तुम बेरहमी से पीट रहे थे
दो धर्मों के दो रसोइये एक साथ
दो दर्जन लोगों के रात के खाने की तैयारी में इस तरह जुटे हुए थे
जैसे देश कुछ नहीं होता, धर्म कुछ नहीं होता
ग्लास और प्लेट को चमकना चाहिए
फलों को काटकर इस तरह परोसा जाना चाहिए
कि आदमी की मरी हुई भूख जाग जाए

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