तुम मेरे साथ
क्षण भर को आये
कितने कम क्षणों तक
साथ चले हम
इस खगोलीय जीवन में
हम दो समानांतर रेखाओं सदृश
खड़े रहे एक स्थान पर
अंतिम विदा तक
क्षण भर को आये
कितने कम क्षणों तक
साथ चले हम
इस खगोलीय जीवन में
हम दो समानांतर रेखाओं सदृश
खड़े रहे एक स्थान पर
अंतिम विदा तक
दिन-रात, रात से दिन
मकर रेखा काटती रही
मेरे प्रति तुम्हारे स्वरों को
तुमने मेरी आवाज़ सुनी
मैंने तुम्हारी दो आँखें देखी
तुम्हारे दो भौहों का मानचित्र
समा गया मेरे हृदय ग्लोब पर
तुमने मेरे हाथों पर अपना हाथ रखा
मेरी गदोलियों पर अपनी उंगलियाँ फेरी
मेरी हस्त रेखाओं में उग आए शब्द
जैसे बरखा से फूल जाती है लकड़ियाँ
जैसे मन का गुस्सा नाक पर
उतने ही हर्ष से फूले थे मेरे शब्द
तुम्हारे स्पर्श से।
‘Khagoliya Ghatna’ Hindi Kavita by Sadhna