हम दोनों एक जैसे थे
जब बातें करते थे तो वक़्त प्रकाश की गति से चलता था
और जब नहीं करते थे
तब समय जड़त्व के नियम का पालन करता था
जब बातें करते थे तो वक़्त प्रकाश की गति से चलता था
और जब नहीं करते थे
तब समय जड़त्व के नियम का पालन करता था
पहेली कठिन थी
और उसका हल बेहद आसान
निर्वात तब तक निर्वात नहीं था
जब तक उसे थोड़ा भरा नहीं गया था
एक टिमटिमाते दिये ने
अँधेरे की सत्ता के भय को और अधिक मज़बूत किया
खोने के भय ने पाने के पलों पर ग्रहण लगाया
तो संपूर्णता की इच्छा
सारे वर्तमान और संभावी संपर्को को ले डूबी
निकटता ने बहुत दूर कर दिया
और हम अपने-अपने आभा मंडल में
स्वयं बंदी हो गये
हमारे मध्य केवल एक फोन काॅल की दूरी रही
दोनों शायद यही गुनगुनाते रहे
“इसलिए खड़ा रहा…. कि तुम मुझे पुकार लो”