नदी, फूल और तारे


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तुम और तुम्हारे बाद भी
जो बचा हुआ है
उस शेष अस्तित्व का
आधार क्या है!

नदियाँ सूख जाने के बाद
भूमिगत हो जाती है
और अपने सबसे विलक्षण क्षणों मे
उभर आती है हमारे चेहरे पर
दो समानांतर रेखाओं के रूप में

फूल सूख कर झड़ जाते हैं बेवक्त,
लड़कपन के वादों की
कोई उम्र नहीं होती
जो वादे पूरे नहीं होते
बन जाते हैं पारिजात के फूल
हर सुबह छोड़ जाते हैं अपनी महक
स्मृतियों की याद की तरह….

तारा मरता है!
उसकी मौत होती है अपने ही दबाव से
महत्वाकांक्षाओं का बोझ
निगल लेता है हमारे सपनों को
ब्लैक होल कुछ और नहीं स्मृतियों के प्रेत है

तुम और तुम्हारे बाद भी
जो बचा हुआ है
उसका आधार
नदी, फूल और तारे हैं!

‘Nadi, Phool Aur Taare’ A Hindi Poem by Abhay Bhadouriya

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