आश्चर्य है कि पूरे चाँद की रात में
किस गति से तैर गया तैराक
खिंच गई दरिया के सीने पर रेख
एक-एक कर टूट गए तारे, डूब गए
दरक गया आशंकाओं का पहाड़
लहरों ने पलटकर तोड़ दी चट्टानें
पानी पर लिखी यह अभूतपूर्व इबारत
पल दो पल में समा जाएगी पानी में ही
लेकिन यह जो असंभव-सा दिखने वाला काम
कर गया वह दुबला-सा तैराक, उसकी याद
रहेगी ताउम्र टीसती-सी, सालती-सी
कहेगी वह बार-बार यह कहानी अमिट
कि दरिया में सिर्फ लाश ही नहीं तैरती
जिंदगी भी तैर जाती है, ज़िद भरी
भरोसे के बाजू हमेशा बनते हैं चप्पू।
‘Paani Par Likhi Ibaarat’ A Hindi Poem by Shuchi Mishra