प्रेम लौटता है,
जैसे लौटती है ठंड में
शाम की धूप।
प्रेम सुकून देता है,
जैसे सुकून देती है
माँ के हाथों की गीली पट्टी
ज्वर से तपते सिर को।
प्रेम छलकता है,
जैसे छलक आती हैं
प्रतीक्षा में डूबी आँखें
वर्षों बाद
पिता के घर लौटने पर।
प्रेम की जिजीविषा
कभी खत्म नहीं होती
वह सदैव गतिमान रहती है,
सृष्टि में सौहार्द भरने के लिए।
‘Prem’ A Hindi Poem by Abhishek Pandey