क़ैदी के पत्र – 2


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हवा बहती है, गुज़र जाती है,
हवा के एक ही झोंके में
चेरी के वृक्ष की वही शाख दो बार नहीं झूम पाती है।
पेड़ों पर पंछी गाते जा रहे,
पंखों में उड़ने की प्यास है।

द्वार बन्द –
धक्का मार इसे खोलना होगा।
मुझको तुम्हारी ज़रूरत है,
ज़िन्दगी को तुम्हारी तरह ख़ूबसूरत
किसी दोस्त, किसी प्रेयसी-सा होना चाहिए।

जानता हूँ, दुख दर्द की भरी थाली में
बहुत दिनों तक अभी खाना है,
लेकिन यह ख़त्म होगा, ख़त्म होगा।

अँग्रेज़ी से अनुवाद: चन्द्रबली सिंह

नाज़िम हिक़मत की अन्य रचनाएँ।

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