रसूल के गाँव की समतल छत पर
बैठी चिड़िया
बैठी चिड़िया
कभी-कभी भोर के कानों में
अवार में मिट्टी कह जाती है।
शोरगुल के बीच,
सिर्फ दो शब्द नसीहतों के,
कह जाते हैं रसूल, कानों में।
मास्को की गलियों में उपले छपी दीवारें नहीं है
कहते थें रसूल के अब्बा,
आँखों में रौशनी की पुड़िया खोलती त्साता गाँव की लड़कियाँ,
आज भी आती होंगी माथे पर जाड़न की गठरी लेकर
और सर्द पहाड़ियों पर कविता जन्म लेती होगी
रसूल क्या आपके गाँव में
अब भी वादियां हरी और घर पाषाणी हैं?
कल ही की बात हो जैसे,
सिगरेट सुलगाते रसूल कहते हैं,
अपनी ज़बान और मेहमान को हिक़ारत से मत देखना
वरना बादल बिजली गिरेंगे हम पर, तुम पर, सब पर।
मैं रसूल हमजातोव,
आज भी दिल के दरवाजे पर दस्तक देता हूँ खट खट,
मांस और बूजा परोसने का समय हो गया है उठ जाओ,
मैं अंदर आऊं या मेरे बिना ही तुम्हारा काम चल जाएगा।