सबने अपना भरोसा बांधा है – शिफाली


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36
हरी गांठ इस भरोसे
कि अबकि जो कोख हरियाएगी
तो घर फिर मायूसी नहीं आएगी
उसकी उम्मीद पर ना सही
कुल की आस पर
दुनिया में आएगी उसकी औलाद
मां को
कुछ बरस
जी लेने की मोहलत मिल जाएगी
—–

लाल गांठ उसकी खातिर
रुसवाई के डर से
कभी ज़ुबान तक नहीं आया जिसका नाम
दुपट्टे का किनोर चीर ही देती
सहेली ने रोक लिया
अम्मा को क्या बताएगी
दुपट्टा कहां खिंच गया
कैसे समझाएगी
जिस पन्नी में फूल लाई थी
देहरी पर चढाने
उसी हरी पन्नी को मन्नत माना
खिड़की की सलाखों को
ऊपरवाले का घर जाना
आंखों से उतारा
हाथों से बांध दिया उसका नाम
जिसे ज़िंदगी माना है
अब उसी रोज़ खोलेगी
मन्नत की ये गांठें
जब उसके नाम की
मेंहदी हाथों पर चढ जाएगी…..
इस दरवाज़े अब वो उसी रोज़ आएगी
——–
पीला, लाल, केसरिया
रंग कहां हैं ये
रूठी, छूटी हसरतें हैं सारी
सबने अपना भरोसा बांधा है
खुदा भी चाहता है
ये गांठे खुल जाएं
सज़्दे में सिर
और बंधे हाथ
अब उससे भी देखे नहीं जाते

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: