हरी गांठ इस भरोसे
कि अबकि जो कोख हरियाएगी
तो घर फिर मायूसी नहीं आएगी
उसकी उम्मीद पर ना सही
कुल की आस पर
दुनिया में आएगी उसकी औलाद
मां को
कुछ बरस
जी लेने की मोहलत मिल जाएगी
—–
कि अबकि जो कोख हरियाएगी
तो घर फिर मायूसी नहीं आएगी
उसकी उम्मीद पर ना सही
कुल की आस पर
दुनिया में आएगी उसकी औलाद
मां को
कुछ बरस
जी लेने की मोहलत मिल जाएगी
—–
लाल गांठ उसकी खातिर
रुसवाई के डर से
कभी ज़ुबान तक नहीं आया जिसका नाम
दुपट्टे का किनोर चीर ही देती
सहेली ने रोक लिया
अम्मा को क्या बताएगी
दुपट्टा कहां खिंच गया
कैसे समझाएगी
जिस पन्नी में फूल लाई थी
देहरी पर चढाने
उसी हरी पन्नी को मन्नत माना
खिड़की की सलाखों को
ऊपरवाले का घर जाना
आंखों से उतारा
हाथों से बांध दिया उसका नाम
जिसे ज़िंदगी माना है
अब उसी रोज़ खोलेगी
मन्नत की ये गांठें
जब उसके नाम की
मेंहदी हाथों पर चढ जाएगी…..
इस दरवाज़े अब वो उसी रोज़ आएगी
——–
पीला, लाल, केसरिया
रंग कहां हैं ये
रूठी, छूटी हसरतें हैं सारी
सबने अपना भरोसा बांधा है
खुदा भी चाहता है
ये गांठे खुल जाएं
सज़्दे में सिर
और बंधे हाथ
अब उससे भी देखे नहीं जाते