शराबी की बीवी


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एक दिन क्या आया मन में
शराबी ने शराब छोड़ दी
पहले तो उसकी बीवी ने माना नहीं
लेकिन जब महीनों निकल गए और पी नहीं बूँद भर
बीवी का गया उसकी सेहत पर ध्यान
सुधरती गयी जैसे-जैसे सेहत
बीवी देखने लगी बड़े-बड़े सपने
कंगन के लिए जोड़ने लगी पैसे
पहनने लगी साफ़-सुथरी साड़ी
दो बच्चे थे, रखने लगी उनका ज़्यादा ख्याल

शराबी
अब शराबी नहीं रहा
उसकी औरत
अब शराबी की बीवी नहीं रही
और इस बात ने
औरत को औरत से अधिक
औरत बना दिया था

लेने लगी आते-जाते लोगों से
सलाह-मशविरा
पूछा एक दिन मुझसे अपना समझकर
बैठने पर पेट में हो रही अकड़न
इसका क्या मतलब होता है
लिवर ख़राब तो नही हो गया
मेरी जिज्ञासा थी किसका लिवर और
कब बैठने से

वह मुस्कुराई
जिसमें पतिदेव की छवि थी
और ‘बैठने’ क्रिया का
और ही मतलब था

शराबी के शराब छोड़ने से
उसकी बीवी को
न जाने कैसी-कैसी चिंताएँ सताने लगी थीं
शराबी की बीवी होने के दुख से
जिसमें कम दर्द वाली बात नहीं थी।

‘Sharabi Ki Biwi’ A Hindi Poem by Sudhir Ranjan Singh

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