सुबह – सुधीर शर्मा


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बहुत सवेरे आज उठा तो देखा मैंने
आँखें मलते मलते सूरज जाग रहा है।

लिंक रोड पर बीत चुके कुछ तनहा बूढ़े
कैनवास के शूज़ कसाए
अपनी अपनी लाठी के संग भाग रहे हैं।

कॉलोनी के पीले-पीले बंद घरों में,
कच्चे पक्के ख़्वाब टूटने ही वाले हैं

नन्हे बच्चे कन्धों पर दुनिया को टाँगे,
हंसने वाली बस का रस्ता देख रहे हैं।

कुछ लड़के सर-सर करते दोपहिया थामें,
सड़ी गली और बासी खबरें बाँट रहे हैं।

उधर फ़लक पे चाँद खड़ा टेढा मुंह करके,
सूरज की एकमुश्त उधारी चुका रहा है।
मेन रोड के लैंपपोस्ट ये जुड़वां सारे,
लाल उनींदी आँखें फाड़े सुलग रहे हैं

बहुत सवेरे आज उठा तो देखा मैंने,
घर के बाहर खून में लथपथ रात पड़ी थी।

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