स्याह पुतलियाँ

स्त्री की आँखों की स्याह पुतलियाँ देखी हैं क्या?
मत देखना
देखोगे तो गोते लगाते रह जाओगे किसी ग़ोताखोर की तरह
समंदर जितना समेट खड़ा हैं
उससे कई गुना ज्यादा मिलेगा इन पुतलियों के व्यास में
तुम देखोगे अनगिनत रास्ते, आकाश, जंगल, झील, दौड़ते हिरन
एक गिलहरी जो दीवार फाँद नही पाई
आग की लपटें, बर्फ की चादर, पानी के फ़व्वारे सब एक जगह
भौंचक्के रह जाओगे
मुमक़िन तो नहीं ऐसा कहीं
तुम देखोगें समस्त पृथ्वी की हलचल इन्ही पुतलियों में

सुन्न हो जाओगे
शर्म आएगी तुम्हें
फिर होगा इतना कि तुम दोबारा नज़रे नही मिला पाओगे

नज़रे मिलाने की शर्त हैं उसकी नज़रों में कभी न देखना
वरना खुद को मुज़रिम सा महसूस करोगे
मुक़र नही सकते
मैं, तुम और हम सब मुज़रिम तो हैं उसके
हर स्त्री के
कैसे और कितने?
ये हमसे बेहतर कौन जाने?

तेजल प्रजापति की अन्य रचनाएँ।

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