किसी एक कहानी संग्रह की तमाम कहानियां एक व्यापक कोलाज़ की तरह होती हैं। यदि आपके पास दृष्टि और सामर्थ्य है तो आप उनमें से कई टुकड़े चुनकर और उनका उचित संयोजन करके उन्हें लिखने वाले के व्यक्तित्व, सोच और जीवन की एक तस्वीर रच सकते हैं। हर रचनाकार अपनी रचनाओं में अपने अनुभवों और अपने विचारों को किसी और की कहानी कहते हुए भी बड़ी महीनता से गूंथ देता है। कंचन सिंह चौहान का पहला कहानी संग्रह “तुम्हारी लंगी” को पढ़ते हुए इस बात की बार-बार पुष्टि होती है।
इस बहुप्रतिक्षित कहानी संग्रह की कहानियां जिस बात के लिए आपको सबसे पहले आकर्षित करती हैं, वह है इन रचनाओं के कथानकों का वैविध्य। दूसरी बात जिससे आप प्रभावित होते हैं, वह है परिवेश और प्रसंगानुरूप भाषा। तीसरी बात, जो शायद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह कि इन तमाम कहानियों के माध्यम से आप एक स्वतंत्र चेतनासम्पन्न सशक्त स्त्री से रूबरू होते हैं जिसमें अपनी परिस्थितियों के विपरीतताओं को मात करके आगे बढ़ने का अदम्य साहस भरा हुआ है। वह जीवन की तमाम मुश्किलों से गुजरती है, उनसे लड़ती है, भिड़ती है, कई बार हताशा से भी भर उठती है मगर कभी पराजित नहीं होती। सिर उठाकर जीने की ख़्वाहिश रखने वाली यह स्त्री इतनी स्वाभिमानी है कि जरूरत पढ़ने पर जीवन और मृत्यु में से मौत को चुन सकती है मगर विवशता को अपने अस्तित्व का हिस्सा नहीं बनाती।
इस संग्रह की पहली कहानी “जाने किसकी खुशी तलाशी है” और संग्रह के शीर्षक के रूप में शोभित आख़िरी कहानी “तुम्हारी लंगी” ये महज दो कहानियां ऐसी हैं जिनमें कंचन की अपनी शारीरिक स्थिति के कारण होने वाले अनुभवों की, ऐसी स्थिति में होने वाली परेशानियों की, संघर्षों की झलक उसके मुख्य किरदारों के माध्यम से सामने आती है। फर्स्ट हैंड अनुभवों के कारण इनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है। मगर कंचन का कमाल यह है कि इन दोनों कहानियों के मुख्य किरदार अपने संघर्ष के माद्दे के कारण, अपनी सोच की स्पष्टता के कारण आपको प्रभावित तो करते हैं मगर किसी तरह के तरस का भाव नहीं जगाते। बल्कि आप उन किरदारों के विचारों की व्यापकता से चमत्कृत रह जाते हैं। इन दोनों कहानियों के मुख्य पात्र अपनी विकलांगता को अपनी विवशता की वजह नहीं बनने देते। इनमें आत्मगौरव से परिपूर्ण एक ऐसी स्त्री उभरती है, जो किसी भी रूप में और किसी भी प्रकार की दया को स्वीकारने को राजी नहीं है। ये कहानियां हिंदी साहित्य में तमाम विमर्शों के शोर में विकलांग विमर्श की एक जरूरी संभावनाओं के द्वार खोलती हैं।
इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक “ईज़” चीजों को अलहदा तरीके से देखने के नजरिये, विचारों की परिपक्वता, चुटीले और प्रभावी संवादों की वजह से आपको प्रभावित तो करती ही है, लेकिन लोगों को उनके पेशे से जज करने की आपकी कंडिशनिंग पर भी जोरदार प्रहार करती है। सिम्मल के फूल शीर्षक से सन् 2016 में पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी कहानी एसिड अटैक का शिकार लड़की के संघर्षों को प्रभावी ढंग से सामने लाती है। जिस किरदार पर यह कहानी केंद्रित है, उसी पर हाल में ही में छपाक नाम से एक फीचर फिल्म बन चुकी है। वर्तुल धारा सरोगेट मदर की कशमकश को मार्मिक ढंग से सामने लाती है। बदजात और मुक्ति जैसी कहानियां ग्रामीण परिवेश में स्त्रियों के साथ होने वाले अन्याय और अत्याचार के महीन रेशे उघाड़कर आपको द्रवित कर देती हैं। लेखिका लोक जीवन के पात्र ही नहीं उठाती, लोकभाषा का भी प्रभावी ढंग से प्रयोग करती है।
एक पाठक के रूप में अपनी कहानियों से आपके भावविश्व को समृद्ध करने वाली इस लेखिका से आपको यह शिकायत निश्चित रूप से हो सकती है कि जबकि उसके बहुत बाद लिखने और छपने वाले रचनाकारों के एकाधिक संग्रह प्रकाशित हो चुके हों, तब उसके इस पहले संग्रह को प्रकाशित होने में इतनी देर क्यों लगी, मगर यह उम्मीद की जा सकती है कि सर्दियों के इस कठिन मौसम में किसी गुनगुनी धूप की तरह आया यह संग्रह लेखिका को वह जरूरी उष्मा प्रदान करेगा कि इससे उपजे उत्साह से वह अपने शाश्वत आलस्य पर मात कर सके और दूसरे संग्रह में इतनी देर न करे। फिलहाल इस प्रभावी संग्रह के लिए कंचन सिंह चौहान को खूब बधाई और अनंत मंगलकामनाएं।