उनतीस नवंबर को मर जाऊँगा
और उस द्वार घर जाऊँगा
जहाँ तेईस जनवरी में मेरी माँ ने जन्म लिया है
वह इतनी सांसारिक थीं
मोह था उन्हें दुनिया से
लोगों के लिए मरने-खटने की
उनकी जीवनी थी
कि स्वर्ग और नर्क उनके लिए नहीं थे
वह जिस दिन मरीं
मैं श्मशान की बेंच पर उनकी चिता की ओर पीठ किए
उनका जन्म देख रहा था
मरकर मुझे मिल जाएगी वह राह
जिस पर दौड़ता हुआ पहुँचूँगा
और अपनी माँ का छोटा भाई बनूँगा
मुझे उनकी पूरी जीवन-कथा का दुहराव देखना है
मुझे उनकी नन्ही गोद में से
धरती पर बार-बार लुढ़कना है
वह मुझे पहचान लेंगी फिर भूल जाएँगी
मैं उन्हें पहचान लूँगा फिर भूल जाऊँगा
वह भूल जाएँगी किसी परिवार में मुझे जन्म दिया था
और मेरी मृत्यु के भय में मेरे इर्द-गिर्द
धुँधली पड़ती चली गई थीं
दूर के शहर के अस्पताल में आँखें मूँदने से पहले
कॉरीडोर की झक्क रोशनी में अकेले खड़े किसी अजनबी
में मेरा भ्रम उनका देखा आख़िरी दृश्य था
मुझे पता है बुदबुदा कर मेरा नाम लिया था
और ईश्वर से मेरी अमरता माँगी थी
मैं उनतीस नवंबर को मर जाऊँगा
अमर उनके घर जाऊँगा।
‘Untees November’ A Hindi Poem By Naveen Sagar