बेहया – कहानी अनकहे, अनजान और अनगढ़े रिश्ते की

बेहया जैसे कि नाम से ही ज़ाहिर है, एक औरत की ज़िंदगी के इर्द गिर्द बुना गया ताना बाना है। ज़ाहिर है, इसलिए कहा, क्योंकि जिस तरह शब्द ‘सज्जन’ पुरुषों के लिए एक्सक्लूसिव रखा गया है, उसी तरह बेहया शब्द औरतों के लिए। क्योंकि हमारे समाज में पुरुष तो बेहया होते ही नहीं हैं और औरत घर से बाहर कदम रखते ही बेहया हो जाती है।

जबसे ये दुनिया बनी है, शायद तबसे ही औरतों को अपना हक मांगना पड़ रहा है। पुरुष औरतों की सुंदरता, गुण, समझ, कला की तारीफ कर सकता है, यहां तक की वह उनकी सलाह भी मांग लेगा, लेकिन कभी उनके विचारों की इज्जत नहीं करेगा। उनकी आज़ादी की लड़ाई उनके साथ नहीं लड़ेगा। वह उनको आजादी देगा भी तो एक हद तक ताकि वे खुद अपनी हद न ढूंढ पाएं। वैसे पता नहीं क्यों औरतों को नियंत्रण में रखने का अधिकार पुरुषों ने अपने हाथों में ले रखा है। हालांकि हमारे समाज में ऐसे पुरुष भी हैं, जो औरतों को अपने बराबर समझते हैं, लेकिन मुट्ठी भर लोग पूरे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। कभी कभी मुझे लगता है, हम बेकार ही ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां औरतों को भी एक मनुष्य होने के सभी अधिकार और उनको अधिकारों के साथ मिलने वाली आज़ादी होगी। क्योंकि बीज ही बबूल का पड़ चुका है तो फूल कहां से लगेंगे। वर्जीनिया वुल्फ की किसी किताब में पढ़ा था कि औरतों के अधिकारों पर चर्चा से ज्यादा पुरुषों का उनके अधिकारों के प्रति विरोध का इतिहास ज्यादा रोचक है।

बेहया भी हमारे इसी समाज से उठाए गए कुछ किरदारों की सच्ची कहानी है। विषय नया नहीं है, लेकिन उसका पुराना होना ही इस बात की गवाही देता है कि समय भले ही आगे बढ़ गया मगर इस पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता नहीं बदली। ऐसे मुद्दों पर तब तक कहा सुना जाते रहना चाहिए जब तक यह विषय कोई मुद्दा ही न रह जाए।

विनीता अस्थाना
विनीता अस्थाना

इस कहानी के तीन मुख्य पात्र है, सिया, अभिज्ञान, यश। सिया यश की पत्नी है। अपने करियर में सफल होने के साथ साथ वह विचारों की धनी और संवेदनशील भी है। उसका पति यश एक अमीर बिजनेसमैन है जो सिया को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। उसके चरित्र को शक भरी नज़रों से देखता है। उसे मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं देता है। सिया भी अपने परिवार और समाज के दबाव में आकर अपनी शादी को बचाने के चक्कर में उसके सभी जुल्म सहती जाती है। एक सशक्त महिला होने के बावजूद वो यश के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करतीं। कभी कभी हम आवाज उठाने में सक्षम होते हुए भी प्रताड़ित होते रहते हैं क्योंकि हमें लगता है कि हम अपनी इस हालत के खुद ही जिम्मेदार हैं और अब हम यही डिजर्व करते हैं।

फिर ज़िंदगी के एक मोड़ पर अभिज्ञान उसकी ज़िंदगी में आता है, और उसकी ज़िंदगी बदलने लगती है।

इसके बाद क्या होता है, मैं नहीं बताऊंगी। अभिज्ञान कैसे उसकी जिंदगी बदलता है, सीता के साथ उसका रिश्ता कितनी दूर तक जाता है, क्या सिया यश की बेड़ियों से खुद को आजाद कर पाती है, इन सभी सवालों के जवाब आपको खुद इस किताब में ढूंढने होंगे।

विनीता जी ने बहुत ही खूबसूरती से सिया के अंतर्द्वंद को लिखा है। हर छोटी से छोटी बात जो एक औरत के मन में उठती हैं, वो सिया के माध्यम से इस किताब में रखी है। इसमें एक जल्लाद जैसा पुरुष है तो पीठ में छुरा घोंपती औरत भी है। सिया जैसी सशक्त औरत है तो अभिज्ञान जैसा खुले विचारों और औरतों की आजादी की पैरवी करता पुरुष भी है। कब विवाह में बने सेक्स संबंध रेप बन जाते हैं, कब विवाह में बंधे होने के बावजूद अपने पार्टनर के अलावा किसी दूसरे के प्रति आकर्षण गलत नहीं लगता और एक प्लेटोनिक रिलेशनशिप क्या होती है, इन सभी बिंदुओं पर भी इस किताब में प्रकाश डाला गया है। यह किताब हमारे समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब है। हर किरदार बिना किसी गिल्ट के अपनी भूमिका में है।

किताब का कवर आकर्षित करता है। बिना वल्गर हुए सेंशुअल होना शायद कुछ ऐसा ही होता है।

बस मुझे कहानी में थोड़े टर्न एंड ट्विस्ट की कमी लगी। कहानी जिस तरह की थी उसमें और भी कई रोचक दृश्य जोड़े जा सकते थे। कहीं कहीं डायलॉग थोड़े लंबे हुए, लेकिन उन्हें कहानी की मांग मानकर नजरअंदाज किया जा सकता है।

अंत में विनीता जी को बहुत बहुत बधाई एक जरूरी विषय पर एक अच्छा उपन्यास लिखने की।

Vinita Asthana’s Book ‘Behaya’ Review by Sadhana Jain

किताब: बेहया
लेखिका: विनीता अस्थाना
पब्लिशर: हिंद युग्म
पृष्ठ संख्या: 155
मूल्य: 150/-

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