आज सड़कों पर


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आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।

दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।

ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।

राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।

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