जो चीज़ें मुस्कुराहटों के लिये जानी जाती रही हैं
वे मुझे सदा से अभिशप्त लगीं।
रंगबिरंगे पंख वाली तितलियों को
फूलों पर इठलाते देखती
तो रो देती
सोच कर कि कुछ ही देर में ये सुंदर पंख
बेरंग,कुमलाये, मृत पड़े होंगे किसी मरे हुए फूल पर।
कोई इन्हें बचाने से बेहतकर इन्हें मसलना समझेगा।
प्रेमियों ने फूल प्रेम में भेंट चढ़ाये –
चाहे प्रेमिका को या अपने ईश्वर को।
मरे हुए फूल मूर्तियों पर सजे रहे।
प्रेमिकाओं के हिस्से आये मरे हुए फूल किताबों में बंद रक्खे गये ।
मरे हुए की ख़ुशबू पर हक़ जमाने से बाज़ नहीं आया कोई।
हर किसी में एक छिपा हुआ हत्यारा दिखा।
बच्चियों को हाथों में मेहँदी लगाते देखती
तो उनकी माओं पर खीझ उठती।
झूठे ख़्वाब देखने के लिये
उन्होंने ही आश्वस्त किया अपनी बेटियों को
कि वे अपने मुकद्दर पर अपनी पसंद के सुंदर रंग चढ़ा सकती हैं।
मेहँदी के चटक रंग के नीचे क़िस्मत की भद्दी लकीरें नहीं छुपती –
वे बच्चियां जिस रोज़ यह जान पाती हैं,
उस रोज़ बहुत देर हो चुकी होती है।
स्कूलों में बच्चों को सिखाया गया
कागज़ की नाव बनाना।
कागज़ की नाव तैराते बच्चों को देखती
तो उदासी से भर जाती ।
बच्चों को स्कूलों में नहीं बताया कि
कागज़ की नाव बारिश के पानी में भी डूब जाती है।
न जाने क्यों कोई मुस्कुरा देता है
किसी बच्चे को कागज़ की नाव तैराते देख कर ?
मैं इस बात में ख़ुशी कैसे तलाश लूँ कि
नाव तैरने के लिये नहीं
डूबने के लिये बनी होती है।
‘Abhishapt’ A Hindi Poem by Meenakshi