बाला- फ़िल्म समीक्षा


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पहली बात, उजड़ा चमन और बाला दोनों ही गंजेपन पे आधारित पहली हिंदी फ़िल्म होने का दावा करते हैं, पर इस विषय पर पहली फ़िल्म ‘गॉन केश’ है जो मार्च 2019 में आई थी, पर लो बजट होने का कारण चुपचाप चली गई थी।

कहानी है बाल मुकुंद उर्फ बाला की, जिसके बाल झड़ रहे हैं और जिससे उसका ‘हेयर लॉस ही नहीँ, आइडेंटिटी लॉस हो रहा है’, दुनिया भर के नुस्खे अपनाने के बाद वो विग पहन के लहराती जुल्फें पाता है और अपनी क्रश हॉट ‘टिक टॉक सेलिब्रिटी’ परी शर्मा को लुभाने और शादी करने में सफल होता है। बाला की दोस्त लतिका साँवली है पर उसने अपने को स्वीकार कर लिया है।फ़िल्म अंत तक बाला को खुद को स्वीकार करने की कहानी है।

फ़िल्म के डायलॉग बहुत ही सही है, और फ़िल्म की जान हैं, जो हंसाने के साथ साथ गंभीर बात भी कह जाते हैं। फ़िल्म कई विषयों को समेटती है और कई सामाजिक मुद्दों और समाज के नजरिये पे कटाक्ष करती है।

फ़िल्म कानपुर और लखनऊ के बीच घूमती है, और कानपुर को भाषा को जिस तरीके से पकड़ती है उससे राइटर निरेन भट्ट की मेहनत दिखाई देती है। ‘लल्लनटॉप, कंटाप, चौकस’ आदि तो हैं ही। पर ‘बिछखापर’ शब्द कभी किसी फ़िल्म में सुनाई पड़ेगा, ये तो कभी सोचा भी नहीं था। मिमिक्री, कानपुर की भाषा, टिकटॉक वीडिओज़, डायलॉग आदि फ़िल्म को जबरदस्त बनाते हैं।

‘बेब्यू आओ न सुहागरात का टिक टॉक बनाते हैं।’
‘मैं तुम्हारा रिबाउंड हूँ।’
‘बदलना क्यों है?’

फ़िल्म कई सारे मुद्दों को उठाती है। ये भी बताती है कि कृष्ण कुब्जा को सुंदर नहीं बनाते हैं उसे उसकी सुंदरता का अहसास कराते हैं, जो कि रंग रूप को मोहताज नहीं। पर गूढ़ता को जाने बिना हर किसी काव्य, महाकाव्य का सरलीकरण होने से उसकी मूल आत्मा खो जाती है, और बच जाती हैं लोगों के बहस के लिए बस कहानियाँ।

दिनेश विजान, राजकुमार राव, आयुष्मान, अमर कौशिक और सेट चरित्र अभिनेताओं आदि की जुगलबन्दी पिछली कई फिल्मों से जम रही है। फ़िल्म में आयुष्मान छा गए हैं। यामी और भूमि की भूमिका छोटी है, पर ठीक है। सबसे ज्यादा सही सहयोगी अभिनेताओं का अभिनय है।

फ़िल्म पहला हॉफ जबरदस्त है, पर सेकंड हॉफ में फ़िल्म खिंचने लगती है और भाषणबाजी पे उतर आती है। इसके अलावा भूमि की बजाय अगर कोई साँवली हीरोइन ली होती तो अधिक न्याय होता, नहीं तो लगता है फ़िल्म खुद उस पूर्वाग्रह से ग्रस्त है जिसके खिलाफ ये बात करना चाहती है।

असल नकल का चक्कर छोड़ दिया जाए तो फ़िल्म जबरदस्त है। देखने लायक।

रेटिंग: 3.5 आउट ऑफ 5

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