प्रेम के दरिया किनारे बैठकर प्रेम का उत्सव: सदानीरा है प्यार

सच है, प्रेम कोई खिड़की न होकर एक पूरा दरिया होता है। दरिया भी कैसा – साफ़, चमचम, मीठे पानी वाला। ऐसे दरिया किनारे बैठकर जब हम इसके पानी में देखते हैं, तो आकाश वहाँ पहले से अठखेलियाँ कर रहा होता है। आकाश और दरिया का प्रेम सबसे प्राचीन है, पुरातन है, पुराना है। दरिया के पास हमारा आना-जाना हो, न हो, आकाश का आना-जाना लगा रहता है। यानी आकाश दरिया को कभी अकेला नहीं छोड़ता। दरिया के शांत पानी में आप दिन में झाँककर देखते हैं, तब भी और चाँद की रोशनी में झाँककर देखते हैं, तब भी वहाँ आकाश हाज़िर दिखाई देता है। ठीक उसी तरह आदमी का प्रेम भी आदमी के साथ हमेशा रहता आया है। प्रेम के इसी प्राचीनतम राग को एक जिल्द में समेटने का प्रयास है कवयित्री सुमन द्वारा संपादित प्रेम कविताओं का संचयन ‘सदानीरा है प्यार’। इस पुस्तक में पचहत्तर कवियों की डेढ़ सौ से ज़्यादा कविताएँ संकलित की गई हैं। जो कवि-कवयित्री इस पुस्तक में शामिल हैं, वे हैं – राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, विजय बहादुर सिंह, आलोकधन्वा, हरीश चंद्र पाण्डे, मदन कश्यप, स्वप्निल श्रीवास्तव, बलराज पाण्डेय, चंद्रकला त्रिपाठी, अष्टभुजा शुक्ल, कुमार अंबुज, सदानंद शाही, इला प्रसाद, श्रीप्रकाश शुक्ल, अनिल करमेले, जितेंद्र श्रीवास्तव, राकेश मिश्र, शहंशाह आलम, नीलेश रघुवंशी, मणिमोहन, भरत प्रसाद, पंकज चतुर्वेदी, संतोष कुमार चतुर्वेदी, अरुण शीतांश, वसंत सकरगाए, आशीष त्रिपाठी, मनीषा झा, सर्वेश सिंह, विनोद विट्ठल, अनिल पुष्कर, सुबोध श्रीवास्तव, कल्पना सिंह, अनुपमा तिवाड़ी, विवेक चतुर्वेदी, जीवन शैफाली, सोनी पाण्डेय, लोकमित्र गौतम, लिली मित्रा, वंदना गुप्ता, कुंदन सिद्धार्थ, विपिन चौधरी, ज्योति चावला, उमाशंकर चौधरी, मुन्नी गुप्ता, रीना सिंह, सत्या शर्मा ‘कीर्ति, अभिनव निरंजन, उर्वशी गहलौत, लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता, शिरोमणि आर. महतो, अनुपम निशांत, मनीषा श्री, शैलजा पाठक, श्वेता राय, विजया शर्मा, मिथिलेश कुमार राय, सपना भट्ट, सुशोभित, कविता कादम्बरी, सीमा सिंह, शालिनी सिंह, प्रदीप त्रिपाठी, अंचित, स्मिता सिन्हा, गार्गी मिश्र, सुमित चौधरी, कुमार मंगलम, गौरव पाण्डेय, गौरव भारती, संदीप तिवारी, आकांक्षा प्रिया, शाश्वत उपाध्याय, नीरव, स्वाति मिश्रा और आनन्द सिंह गौतम।

प्रेम की तालीम मनुष्य का पहला कर्तव्य है। आज हम सबकुछ की तालीम पाना चाहते हैं, लेकिन प्रेम की नहीं। ऐसा है, तभी हम किसी का बलात्कार कर लेते हैं, किसी की हत्या कर देते हैं, किसी को लूट लेते हैं, किसी की ज़मीन हड़प लेते हैं, किसी का पैसा मार लेते हैं, किसी को गालियाँ बक देते हैं। जो आदमी अपने भीतर अगाध प्रेम के होने का दावा करता है, वह सबसे पहला काम यही करता है कि वह या तो प्रेम में किसी से धोखा खाता है अथवा किसी को धोखा देता है। यानी अब हम प्रेम की शुद्धता के साथ किसी को प्रेम करना नहीं चाहते। इतने के बावजूद, एक घर ऐसा है, जहाँ प्रेम अब भी निर्मलता, स्वच्छता, निश्छलता से बचा दिखाई देता है। इस घर के आसपास दरख्त हैं, चिड़ियाँ हैं, जलकुंड हैं, पहाड़ हैं, फूल हैं, आकाशगंगाएँ हैं और वह है कविता का घर। कविता के इसी पवित्र घर में रहते हुए कवयित्री सुमन ने प्रेम की इतनी सारी कविताएँ इकट्ठी की हैं और इन कविताओं को किताबी शक्ल देकर कविता की मुलायम दुनिया को सौंपा है। कहते हैं, प्रेम सदानीरा होता है, तभी प्रेम कविताओं के इस चयन का नाम ‘सदानीरा है प्यार’ रखा गया है। मेरे ख़्याल से, प्रेम का भविष्य यही है कि कोई आदमी जितनी दफ़ा किसी की मुहब्बत को मारने की कोशिश करता है, उसकी मुहब्बत उतनी ही बार अद्वितीय होकर, क्लासिक होकर, विराट होकर प्रकट हो जाती है। पुनरुज्जीवित हो जाती है। अपने विरुद्ध बढ़ रही घेराबंदी को तोड़ डालती है। इस संकलन के लिए कवयित्री सुमन ने कविताओं का चयन और संपादन करते हुए इस बात का ख़ास ख़्याल रखा है कि राजेश जोशी की पीढ़ी के साथ-साथ उनके बाद की पीढ़ी की कविताएँ हों और नई पीढ़ी का भी प्रतिनिधित्व इस संचयन में रहे। कवयित्री सुमन इस कोशिश में कामयाब होती दिखाई देती हैं।

हमारे चलने के लिए प्रेम का रास्ता सबसे अच्छा रास्ता है। इस रास्ते पर चलने में ढेरों कठिनाइयाँ आती हैं, तब भी, यह यात्रा हमेशा से रोमांचक रही है। ‘सदानीरा है प्यार’ में संकलित राजेश जोशी की कविता ‘तितलियाँ’ में प्रेम की यात्रा के इस रोमांच को बख़ूबी महसूस किया जा सकता है,

हरी घास पर ख़रगोश

ख़रगोश की आँखों में नींद

नींद में स्वप्न

चाँद का

चाँद में क्या?

चाँद में चरखा

चरखे में पोनी

पोनी में कतती

चाँदनी

चाँदनी में क्या?

चाँदनी में पेड़

पेड़ पर चिड़िया

चिड़िया की चोंच में

संदेसा ऋतु का

ऋतु में क्या?

ऋतु में फूल

फूल पर तितलियाँ

हरी पीली लाल बैंजनी

रंग-बिरंगी तितलियाँ

तितलियाँ

जैसे स्वप्न पंखदार

जैसे बहुरंगी आग के टुकड़े

उड़ते हुए

तितलियाँ जाती हैं घरों में

बिना आवाज़, बेखटके

जवान होती लड़की के बदन पर

बैठती हैं उड़ जाती हैं

कि ‘छू लिया’

प्रेम होगा अब तुझे किसी से

तितलियाँ ही तितलियाँ

तितलियों पर आँखें

लड़की की

लड़की की आँखों में क्या?

तितलियाँ (पृष्ठ : 14-15)।

राजेश जोशी की यह कविता उन लड़कियों की कल्पना की कविता है, जो ख़रगोश के पीछे भागती हुई बड़ी होती हैं, चाँद के पीछे भागती हुई बड़ी होती हैं, चिड़ियों के पीछे भागती हुई बड़ी होती हैं, तितलियों के पीछे भागती हुई बड़ी होती हैं, लेकिन यह भागना उनको प्रेम नहीं दिला पाता, प्रेम के बदले अधूरे सपने दिलवाता है, और कुछ नहीं। यथार्थ यही है, आज लड़कियों को जो जीवन दिया गया है, उस जीवन में प्रेम के लिए कोई जगह नहीं होती है बल्कि जीवन को किसी तरह जी लेने का दबाव भर होता है। मंगलेश डबराल इसी विचार को अपनी कविता ‘उस स्त्री का प्रेम’ में कुछ इस तरह से बयान करते हैं –

वह स्त्री पता नहीं कहाँ होगी 

जिसने मुझसे कहा था 

वे तमाम स्त्रियाँ जो कभी तुम्हें प्यार करेंगी 

मेरे भीतर से निकल कर आई होंगी 

और तुम जो प्रेम मुझसे करोगे 

उसे उन तमाम स्त्रियों से कर रहे होगे 

और तुम उनसे जो प्रेम करोगे 

उसे तुम मुझसे कर रहे होगे 

यह जानना कठिन है कि वह स्त्री कहाँ होगी 

जो अपना सारा प्रेम मेरे भीतर छोड़कर 

अकेली चली गई (पृष्ठ : 18)।

प्रेम को लेकर मंगलेश डबराल की कविता में मिलावट का कोई मामला दिखाई नहीं देता। प्रेम करने का सच यही है न कि हम जिससे मुहब्बत करते हैं, उससे हम मिल तक नहीं सकते। ऐसा है, तभी विजय बहादुर सिंह लिखते हैं,

बरसों बाद हम 

बैठे इतने क़रीब 

बरसों बाद फूटी आत्मा से 

वही जानी-पहचानी सुवास 

बरसों बाद हुए हम 

धरती हवा आग पानी आकाश

(‘बरसों बाद’, पृष्ठ : 21)।

आलोकधन्वा के साथ भी यही होता है। तभी प्रेम की हरेक ख़बर के भीतर की कथा ही तो सुनाते हैं आलोकधन्वा,

पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार 

कई बार तो उनमें घुसकर 

लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते 

शाम को अपना परदा बनाते हुए 

अक्सर ही बिना झूठ 

और बिना चाँद के

(‘प्यार’, पृष्ठ : 27)।

हम जिससे प्रेम करते हैं, उसके ललाट को चूमते हुए जो सुख हमको मिलता है, वही सुख हमें ‘सदानीरा है प्यार’ में संकलित कविताओं को पढ़कर मिलता है। हमारे साथ ऐसा इसलिए होता है कि यह दुनिया जिस तरह रोज़ ख़ुद को नई कर लेती है, उसी तरह इश्क़ भी कभी पुराना नहीं होता। इस रोज़ नई होती दुनिया का और इस रोज़ नए होते इश्क़ का मिज़ाज एक जैसा है। यानी दोनों ख़ुद को कभी पुराना नहीं होने देते। हम जो इस दुनिया में जी रहे होते हैं या हम जो इश्क़ कर रहे होते हैं, हमारी देह, हमारी शक्ल, हमारी आवाज़ ज़रूर पुरानी पड़ जाती है। हरीश चंद्र पाण्डे की कविता ‘वह मेरे बचपन की फोटो देख रही है’ हमारे जीवन की इसी गाथा को विस्तारती है,

वहाँ, मेरे बचपन में क्या हो सकता है तुम्हारे लिए 

वो मकान वह बछिया जिनके आगे मैं खड़ा हूँ फोटो में 

बिना इन दोनों को समझे नहीं समझ सकतीं 

लेकिन न वो मकान रह गया है अब और न बछिया

(पृष्ठ : 31)।

जीवन के इसी नायाब रंग के बहाने मदन कश्यप अपनी कविता ‘पनसोखा है इंद्रधनुष’ में प्यार को संबोधित करते हुए कहते हैं –

क्या तुम वही थीं 

जो कुछ देर पहले आई थी इस मिलेनियम पार्क में 

सीने से आइपैड चिपकाए हुए 

वैसे किस मिलेनियम से आई थीं तुम 

प्यार के बाद कोई वही कहाँ रह जाता है जो वह होता है

(पृष्ठ : 35)।

दरअसल प्रेम वह औषधि है, जो जीवन के बचाव में हमेशा काम आती है। अब इस औषधि की पहुँच को दूर तक फैलने से रोका जा रहा है। एक सवाल यह उठ सकता है कि जब सरकारें प्रेम पर पहरा ख़ुद लगाने को तत्पर हुई जा रही हैं, तब मनुष्य अपने प्रेम को कैसे बचाए? चिंता वाजिब है। पहले घर वाले हमारे प्रेम पर अपनी निगाहें रखते थे, आस-पड़ोस के लोग हमारे प्रेम पर अपनी निगाहें रखते थे, अगल-बग़ल के छोकरे हमारे प्रेम पर अपनी निगाहें रखते थे। अब तो हमारे द्वारा चुनी हुई सरकारें हमारे प्रेम पर पहरा लगाने के लिए काला क़ानून बनाकर ताल ठोंक रही हैं। लेकिन प्रेम पर क्या कोई पहरा लगा पाया है, नहीं न, फिर सरकारें किसी के सच्चे प्रेम को कैसे क़ैद कर सकती हैं? सरकारें यह बात ख़ूब अच्छी तरह से जानती हैं कि प्रेम क्रांति को जन्म देता है और क्रांतियों से सरकारें डरती रही हैं। यही वजह है, सरकारें प्रेम के विरुद्ध खड़ी दिखाई देती हैं। सच में, यह प्रेम को लेकर एक बेहद हिंसक समय है, तब भी प्रेम को तो हमेशा आज़ाद रहना है, कोई सैयाद किसी की मुहब्बत को क़ैद करने की ख़ातिर लाख अपने जाल बिछाता फिरे। फिर प्रेम के बचाव में जब कविता की सारी बिरादरी पूरी ताक़त लगाकर हमेशा से डटी चली आई है, प्रेम को तो हमेशा बचे ही रहना है। प्रेम के बचाव में हमारे कवि कहते हैं –

अक्सर मैं तुम्हारे पास अपना रूमाल भूल जाता हूँ 

कहीं गिर जाती है मेरी क़लम 

मैं भी तुम्हारे पास थोड़ा छूट जाता हूँ 

इस आवाजाही में मुझे कुछ अपनी भूली हुई चीज़ें 

वापस मिल जाती हैं

(‘हिंसक समय में प्रेम’, स्वप्निल श्रीवास्तव, पृष्ठ : 41)।

 

तुमसे मिलकर लगता है 

जैसे कई दिनों से झुराए पौधे को मिलता है 

आषाढ़ की पहली बरसात का पानी 

जैसे शहर के व्यस्ततम चौराहे पर खड़े किसी मज़दूर को 

दिन भर के लिए ही सही 

मिल जाता है कोई छोटा-मोटा काम

(‘तुमसे मिलकर’, बलराज पाण्डे, पृष्ठ : 43)।

 

हाँ यह सच है कि 

प्रेम ख़त्म नहीं हुआ है 

बस उसकी ज़रूरत ख़त्म हुई है

(चंद्रकला त्रिपाठी, ‘प्रेम एक भूली हुई लहर’, पृष्ठ : 46)।

 

चार महीनों में 

मैंने संध्या के साठ रूप देखे 

और उषा के एक सौ बीस 

चौमासे भर 

बादल पानी भरते रहे होंगे तुम्हारे आगे

(‘चौगुनी नई’, अष्टभुजा शुक्ल, पृष्ठ : 49)।

 

यह दिन की चट्टान है जिस पर मैं बैठता हूँ 

प्रतीक्षा और अँधकार उम्मीद और पश्चाताप 

वासना और दिसंबर वसंत और धुआँ 

मैं हर एक के साथ कुछ देर रहता हूँ

(‘यहाँ पानी चाँदनी की तरह चमकता है’, कुमार अंबुज, पृष्ठ : 53)।

 

मैं जिससे सालों साल प्यार करता रहा हूँ 

उसे कितना जानता हूँ 

जितना उसे रोज़-ब-रोज़ देखता हूँ 

या देख पाता हूँ 

रूप और रंग से 

देह और धजा से 

दफ़्तर से घर 

घर से दफ़्तर 

आते-जाते 

बाज़ार से ख़रीदे हुए 

सामानों से 

उस घर से 

जिसमें वह रहती है

(‘उसे कितना जानता हूँ’, सदानंद शाही, पृष्ठ : 59)।’

 

अबकी बार जब आऊँगा 

तो तुमसे नहीं मिलूँगा मैं 

तुमसे मिलकर घर याद आता है 

घर जो तुम्हारे साथ मिलकर 

मैं बनाना चाहता था

(‘अबकी बार जब आऊँगा’, इला प्रसाद, पृष्ठ : 66)।’

 

विचित्र है, जब तुम मेरे पास थी 

मैं एकवचन में सोचा करता था 

आज जब तुम दूर हो 

मैं बहुवचन में सोचा करता हूँ

(‘एकवचन’, श्रीप्रकाश शुक्ल, पृष्ठ : 68)।

sadanira hai pyar
किताब अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।

यथार्थ यही है कि मनुष्य प्रेम में विचित्र हो जाता है। विचित्र इस तरह कि एक आदमी लुक-छिपकर जिससे प्यार करता है, उस आदमी को यही लगता है कि उसके प्यार के बारे में किसी को कुछ भी नहीं मालूम, जबकि सच्चाई यह होती है, उसके प्यार के बारे में सारे जहान को मालूम रहता है। आप प्यार में पड़कर किसी को चिट्ठियाँ लिखते हैं, तो उन चिट्ठियों को पहले कोई और पढ़ चुका होता है। प्यार सचमुच सदानीरा जो होता है। तभी यह किसी के छुपाए नहीं छुपता। प्यार दरिया में हिलती-डुलती उस नाव की तरह है, जो हमेशा अपनी सवारी के लिए उकसाती है। ‘सदानीरा है प्यार’ में संकलित कविताएँ भी उसी कश्ती की तरह हैं, जो कश्ती आपको सिर्फ़ मुहब्बत करना सिखाती है। तेज़ बारिश हो, तब भी। तेज़ धूप हो, तब भी। तेज़ हवा हो, तब भी। अनिल करमेले की कविता ‘इसी भरोसे के लिए’, जितेंद्र श्रीवास्तव की कविता ‘आँखों में चिट्ठियाँ’, राकेश मिश्र की कविता ‘प्रेम करते हो’, नीलेश रघुवंशी की कविता ‘मुझे प्रेम चाहिए’, मणिमोहन की कविता ‘एक दिन’, भरत प्रसाद की कविता ‘तुम्हारे झर-झर मुस्कान की अदा’, पंकज चतुर्वेदी की कविता ‘अगर यही प्रेम है’, सन्तोष कुमार चतुर्वेदी की कविता ‘प्यार हो जाता हूँ’, अरुण शीतांश की कविता ‘पेड़ के गिर जाने पर’, वसन्त सकरगाए की कविता ‘ज़रूरत’, आशीष त्रिपाठी की कविता ‘समुद्र में आकाश’, मनीषा झा की कविता ‘प्रेम के पूरेपन में पेंच थे बहुत’, सर्वेश सिंह की कविता ‘डूबना सिर्फ़ मरना नहीं होता’, विनोद विट्ठल की कविता ‘बड़ी उम्र की प्रेमिकाएँ’, अनिल पुष्कर की कविता ‘वो ख़्वाबों के पर गिनती है’, सुबोध श्रीवास्तव की कविता ‘तटबंध’, कल्पना सिंह की कविता ‘थाती’, अनुपमा तिवाड़ी की कविता ‘छुअन तुम्हारी’, विवेक चतुर्वेदी की कविता ‘तुमने लगाया था’, जीवन शैफाली की कविता ‘तुमसे मिलने से पहले’, सोनी पाण्डेय की कविता ‘तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र’, लोकमित्र गौतम की कविता ‘तुम्हारे जैसा कोई नहीं’, लिली मित्रा की कविता ‘बादल’, वन्दना गुप्ता की कविता ‘तुम्हारे क़रीब’, कुंदन सिद्धार्थ की कविता ‘कठिन दिनों में’, विपिन चौधरी की कविता ‘प्रेम के लिए माक़ूल तैयारी’, ज्योति चावला की कविता ‘प्यार में डूबी लड़की’, उमा शंकर चौधरी की कविता ‘जब तुम थीं’, मुन्नी गुप्ता की कविता ‘तुम्हारे और मेरे दरम्यान’, रीना सिंह की कविता ‘रंग’, सत्या शर्मा ‘कीर्ति’ की कविता ‘तुम पुकार लेना’, अभिनव निरंजन की कविता ‘प्रेम कथा’, उर्वशी गहलौत की कविता ‘चालीस पार उम्र की स्त्री का प्रेम’, लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता की कविता ‘तुम्हारे चले जाने से’, शिरोमणि आर. महतो की कविता ‘छोटे शहर में प्यार’, अनुपम निशान्त की कविता ‘अपना शून्य गढ़ो’, मनीषा श्री की कविता ‘अब तेरी याद नहीं आती’, शैलजा पाठक की कविता ‘प्रेम हार नहीं मानता’, श्वेता राय की कविता ‘मेरे पुरुष’, विजया शर्मा की कविता ‘तुम्हारे लॉन का गुलमोहर’, मिथिलेश कुमार राय की कविता ‘लड़की हँसने के मामले में कंजूस थी’, सपना भट्ट की कविता ‘वाद्य यंत्रों से भरे कमरे में’, सुशोभित की कविता ‘फ़ारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो’, कविता कादंबरी की कविता ‘तुमसे प्रेम करते हुए’, सीमा सिंह की कविता ‘जहाँ तुम नहीं हो’, शालिनी सिंह की कविता ‘लौट आना’, प्रदीप त्रिपाठी की कविता ‘भीगे हुए प्रेम में शहर’, अंचित की कविता ‘अँधेरे छत पर तुम’, स्मिता सिन्हा की कविता ‘अनुराग’, गार्गी मिश्र की कविता ‘अंतिम’, सुमित चौधरी की कविता ‘स्मृतियाँ’, कुमार मंगलम की कविता ‘चाह’, गौरव पाण्डेय की कविता ‘गाँव की लड़कियों का प्रेम’, गौरव भारती की कविता ‘भाषा’, संदीप तिवारी की कविता ‘गुमशुदगी’, आकांक्षा प्रिया की कविता ‘जाने क्यूँ’, शाश्वत उपाध्याय की कविता ‘अब इजाज़त दे दो मेहरम’, नीरव की कविता ‘मन की चूक’, स्वाति मिश्रा की कविता ‘तुम्हारे शहर की धूप’, आनंद कुमार गौतम की कविता ‘तुम जान कहाँ पाती हो’ तेज़ बारिश, तेज़ धूप, तेज़ हवा में हमारे काम आने वाली कविता है। ये कविताएँ सचमुच में प्रेम का उत्सव मनाती हैं। ये कविताएँ इस उजाड़ समय को अपनी आवाजाही से दुरुस्त करती हैं।

अंततः ‘सदानीरा है प्यार’ की कविताओं के चयन, संपादन, प्रकाशन को लेकर मेरी राय यही है कि ऐसे कार्य समकालीन हिंदी कविता को सार्थकता प्रदान करते रहे हैं। प्रेम की अनुभूति मात्र से जब मनुष्य के भीतर छुपा हुआ संगीतकार बाहर निकल आता है, तो तसव्वुर कीजिए कि प्रेम कविताओं के इस संचयन को पढ़कर हमारे अंदर का रागात्मक मनुष्य किस क़दर ख़ुश होगा। वैसे भी, आज जब प्रेम के शत्रु यहाँ-वहाँ घूमते, टहलते, खी-खी करते दिखाई दे रहे हैं, तो कविता की प्रेम को बचाने ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। इस ज़िम्मेदारी को इस पुस्तक की संपादिका और कवयित्री सुमन ने जिस ख़ूबसूरती से अंजाम दिया है, ‘सर्व भाषा ट्रस्ट’ ने उतनी ही ख़ूबसूरती से इस किताब को छापा है। यह किताब ख़ुद को पढ़े और सराहे जाने की माँग करती है।

‘Sadanira Hai Pyar’ Book Review by Shahanshah Alam

‘सदानीरा है प्यार’ (प्रेम कविताओं का संचयन)
संपादक : सुमन
प्रकाशक : सर्व भाषा ट्रस्ट
प्लॉट नंबर – 65-66, जी ब्लॉक, गली नंबर – 20
राजापुरी, उत्तमनगर, नई दिल्ली – 110059
मूल्य : ₹ 300
मोबाइल – 8178695606

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