कठिन से कठिन बातों को कहने और समझाने के लिए फ़िल्में कितना सशक्त माध्यम हो सकती हैं, इसका उदाहरण है ज़ी5 की फिल्म ‘चिंटू का बर्थडे’
कहानी है एक प्रवासी परिवार की. जो कमाई के लिए बग़दाद ,इराक में रहता है. सन 2004 का समय है,इराक गृहयुद्ध में फंसा है. सद्दाम का शासन खत्म हो चुका है. अमेरिकी सैनिक ‘वेपन्स ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन’ ढूंढने के नाम पे वहाँ डटे हुए हैं. भारत ने कहने के लिए अपने सारे नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया है,पर ये परिवार वहीँ फँसा रह गया है. और ऐसे में चिंटू का आज छठा बर्थ डे है. उसके परिवार का एक ही सपना है, कि उसका अच्छे से बर्थ डे मना लिया जाए बस.
मैं ये फिल्म देखने बैठा था, हलके फुल्के मनोरंजन के लिए. पर इसे देख के दंग रह गया. कितने हलके फुल्के तरीके से, कम से कम शब्दों में कितने सारे मुद्दे उठाये गए हैं. इराक में सद्दाम हुसैन का शिया लोगों पे कहर, इराक में बेवजह की अमेरिकी दादागिरी, थके-मांदे अमेरिकी सैनिको की ज़िंदगी, प्रवासी भारतियों का दर्द, देश के हुक्मरानों का दूसरे मुल्क में फँसे लोगों के लिए संवेदनहीनता, काम के लिए नेपाली पासपोर्ट की की मजबूरी, एक मध्यम वर्गीय परिवार की चिंताएँ ,खुशियाँ ,छोटे छोटे सपने और आशाएँ। सबका बहुत ख़ूबसरत चित्रण किया गया है.
सिर्फ एक चीज चुभती है फिल्म देखते वक़्त, वो है फिल्म के किरदारों का कई भाषाओँ में संवाद होना। अरबी,हिंदी, भोजपुरी और अंग्रेजी का मिश्रण है फिल्म में. जो कि फिल्म को ऑथेंटिक बनाता है. पर अरबी सुनने की बजाय सबटाइटल पढ़ना पड़ता है,बस यही खलता है.
एक भोजपुरी गीत,है फिल्म में जो बहुत प्यारा हैं और सुन्दर गाया गया है,एक्टिंग में सीमा पाहवा, विनय पाठक,तिलोत्तमा शोमे सब ने कमाल किया है. पूरी फिल्म एक घर के अंदर ही फिल्माई गई है,पर फिर भी कॉमेडी,सस्पेंस आदि सब समाहित कर के चलती है. एडटिंग जबरदस्त हैं एक भी सीन फालतू नहीं.
फिल्म ज़ी5 पर उपलब्ध है, और जरूर से जरूर देखने लायक है.
रेटिंग : 5 आउट ऑफ़ 5