दबे हुए फ़ूल मोहब्बत के


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तुम्हें अपने अतीत से नफ़रत है क्या,
कभी कोई याद संजो कर रखी है?

पूछो, तो कहते हो ..
जो हो ना सका मुकम्मल,
उसे सहेजने से क्या फ़ायदा!
जैसे सीवन के उधड़ जाने से,
पुराने कपड़ों को फ़ेंक देते है किसी कोने में,
नहीं टांग कर रखते खूंटी पर,
के पहनने की चाह हो, और पहन पाना मुश्किल लगे।

जैसे डूबता सूरज समेट लेता है धूप अपने साथ,
और ढेल जाता है ढग भर अंधेरा,
वैसे ही किसी आशना के जाने से,
उसके लम्हें भी रुखसत लेकर
छोड़ जाते हैं चंद अश्कों की छांव।

तो भला मेरे साथ गुजारे लम्हों का क्या होगा?
उन्हें दिल के किसी आले में जगह दोगे?

या उन पर बस इतना एहसान करना,
अपनी डायरी के इक पन्ने पर पिन कर देना,
जैसे दबे हुए फूल मोहब्बत के सालों दफन रहकर,
साथ रहते हैं,
इक आह भी नहीं करते।

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