हमें ना जीत की चाहत, हमें ना हार का डर है।
हमारे पास एक घर था, हमारे पास एक घर है।।
यही मासूम रुख़ देखो, यही इबलीस, दरिंदा है।
कभी बाहर नहीं आता, पसे चहरा है, भीतर है।
सफ़ीने और परिंदे हैं, किनारे लोग हैं बैठे।
मगर जो मैं अकेला हूँ, अकेला तो ये समंदर है।।
किसी की आरज़ू है फूल बस एक बू के अब ऊगें।
बड़ी ग़मगीन ख़्वाइश है, बड़ा बे-कार चक्कर है।।
यहां जो जैसे होगा सब ख़ुदा के हाथ है मतलब,
हमारे हाथ में केवल महीनों का कलेंडर है।
उसे मालूम है उस की हक़ीक़त कुछ नहीं है वो।
मगर माशूक उस के कह रहे हैं वो ही कलंदर है।।
सुना कई बार था पहले, मगर एतबार आया अब।
कि जब एक आँकड़ा हो आदमी, तब मौत बदतर है।
‘Hamare Paas Ek Ghar Hai’ A Ghazal by Pradumn R. Chourey