हिजाब


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वो जो एक मुल्क़ है ना
बर्फ की पहाडियों से आगे कहीं
लोग ईरान कहते हैं जिसको
सुना बेपर्दगी हुई है वहाँ

‘सबा, इक बीस साला लड़की ने
हिजाब उतार दिया था और अब
मुँह दिखाई की हिमायत में क़ैद पाई है
वो भी चौबीस बरस क़ैद-ए-बामशक्कत है

चाँद को भी फलक से खींच लो और क़ैद करो
रोज बेपर्दा सरेआम चला आता है
निकालो फतवे भी कलियों के खिलाफ़

रोज खिलती हैं इबादत में खलल डालती हैं
और खुशबु भी तो आवारा है बेपर्दा है
चलाओ उसपे भी मुकदमा बेहयाई का

या अगर दम है बना दो हिजाब सबके लिए

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