जनवरी


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इस महीने
कमरे में पड़ती धूप
पिछले महीने की धुँध से ही
छन कर आती है

और आते ही
सबसे पहले पड़ती है
पुआल की गोद में
शान्त सोते हुए पाले पर

अर्थ से सने पाँव लिए
खिड़कियाँ खड़खड़ाते हुए
एक हवा आती है
और हमारे बीच जलती
शब्दों की धीमी आँच को
थोड़ा और
अर्थमय कर देती है

दाँत किटकिटाती
बैजंतीमाला को
जब छूती है
इस महीने की शीत लहरी
तब कंपकंपा उठता है
ओस से नहाया सम्पूर्ण उपवन

कभी इस महीने की
भव्यता पर
केंद्रित करो ध्यान
तुम्हें दिखेगा आलू के मेढ़ों पर
भटकता हुआ वसंत
गेंहू के खेतों में
सावन बन कर उतरता पानी
पेड़ की पत्तियों पर
बिखरे फाल्गुन के चटख रंग

यह महीना पतंग पर
बैठ कर आता है
और धागे के सहारे
उतरता है धीरे-धीरे
उन लोगों के मध्य

जो कितने ही दिनों से
न होने की
उनकी रिक्तता
एक दिन के ठहराव से
भरने की कोशिश करते हैं

दिसंबर की चट्टान को
तोड़कर नन्हे पौधे की तरह
निकल आता है
यह महीना

सूरज की रौशनी
गुँथकर बालों में
एक चिड़ियाँ चहचहाते हुए
आकाश की ओर
फुर्र से उड़ जाती है।

‘January’ A Hindi Poem by Piyush Tiwari

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