तुम्हें बढ़ते हुए देखने से ज़्यादा सुखद
मेरे लिए और कुछ नहीं,
परन्तु तुम ऐसे वक़्त में बड़ी हो रही हो
मेरी बच्ची
जब मानवता की हांफनी छूटी जा रही है
और हर कोई यह सिद्ध करने
में लगा है कि मनुष्य के भीतर पशुओं से
ज़्यादा पशुता है।
प्रेम के मोल में लगातार दर्ज की जा
रही है गिरावट
और संवेदनशीलता हमारी वर्तनी से निरंतर
छिटकती जा रही है।
सारी संवेदनाएं हाशिये पर धकेल दी गयी हैं
और मुख्य धारा में ध्वंस की प्रतियोगिताएं
जारी हैं
आँसू महज़ अभिनय के वक़्त निकल
रहे हैं ग्लिसरीन के सहारे से
और ह्रदय की सीमा रेखा तीव्र गति से
सिकुड़ती जा रही है।
मैं नहीं जानता कि तुम्हारा करुण ह्रदय
इस क्रूर समय के लिए अभी तैयार है भी या नहीं
या कभी हो भी पाएगा।
पर इन सबसे परे
तुम बढ़ रही हो अपने सपनों और तमाम
इच्छाओं के साथ
और मैं तुम्हें देख रहा हूँ हँसती आँखों में
छिपी असुरक्षा की भीगी नज़रों से
साथ ही जैसे-तैसे पोस रहा हूँ अपने भीतर
उपजी उम्मीद की उस कोंपल को
जो फुसफुसा रही है
कि इस वक़्त से उलट तुम्हारे समय में
तुम बेफ़िक्री से देखोगी अपनी बच्ची को
बढ़ते हुए।
‘Kikki Ke Liye’ A Hindi Poem by Rahul Tomar