तुम्हारी वो पुरानी टीन की पेटी निकालो तो
के जिसकी धुल पर बरसों से इक कपडा नहीं मारा
के जिसकी धुल पर बरसों से इक कपडा नहीं मारा
उसी में कत्थई एक डायरी कोमा में है कबसे
वहीँ बाज़ू में कुछ ग्रीटिंग्स के तकिये पे सर रखके कहीं गोदान सोया है
बगल की एक थप्पी पर
वहां साहिर के मिसरे अमृता से बात करते हैं
कहीं ग़ालिब की नज़्में और कहीं दोहे कबीरा के
कहीं है राम तुलसी के, कहीं पर कृष्ण मीरा के
बढ़ाकर हाथ इक दिन इनको थोड़ी कंपनी दे दो
किताबें बात करती हैं।