मैं कोसों दूर, एक वही स्पर्श जीता हूँ


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स्पन्दन तेज़ हो तो यही होता है कि,
आप थक चुके हैं, अब रुक जाएँ, 
परन्तु स्पन्दन, स्नेह की पुकार भी है;
वह जागृति लाती है, नवीन चेतना व तेजस भरती है,
वह हिया को संदेश भेजती है, कि वह आ गई,
वह शरीर के प्रत्येक अंग को सूचित करती है,
कि उठो, तुम्हारी प्रतीक्षा हुई समाप्त;

हाथों उठो, सब कुछ व्यवस्थित करना शुरू करो,
पगों जगो, कि तुम्हारी यात्रा अब हुई प्रारम्भ,
ऐ सदय कंठ! चलो न तुम भी,
अपनी मधुर तानें साफ कर डालो,
और मन, मस्तिष्क से कहना कि,
उनकी भी तपस्या अब हुई सम्पन्न;

आह कितना मनोरम! 
होता है उन शब्दों का स्पर्श,
वे मात्र शब्द नहीं, जीवन होते हैं,
जिससे एक नहीं, कई जीवन जीए जा सकते हैं;

तुमने तो कभी, बस, इतना ही कहा था,
कि ‘तुम्हारी हाथों में मेरे हाथ हैं’
मैं कोसों दूर वही स्पर्श ले बैठा,
मैं कोसों दूर, एक वही स्पर्श जीता हूँ।

‘Ek Wahi Sparsh’ Hindi Poem by Vijay Bagchi

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