मैं कोसों दूर, एक वही स्पर्श जीता हूँ


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36

स्पन्दन तेज़ हो तो यही होता है कि,
आप थक चुके हैं, अब रुक जाएँ, 
परन्तु स्पन्दन, स्नेह की पुकार भी है;
वह जागृति लाती है, नवीन चेतना व तेजस भरती है,
वह हिया को संदेश भेजती है, कि वह आ गई,
वह शरीर के प्रत्येक अंग को सूचित करती है,
कि उठो, तुम्हारी प्रतीक्षा हुई समाप्त;

हाथों उठो, सब कुछ व्यवस्थित करना शुरू करो,
पगों जगो, कि तुम्हारी यात्रा अब हुई प्रारम्भ,
ऐ सदय कंठ! चलो न तुम भी,
अपनी मधुर तानें साफ कर डालो,
और मन, मस्तिष्क से कहना कि,
उनकी भी तपस्या अब हुई सम्पन्न;

आह कितना मनोरम! 
होता है उन शब्दों का स्पर्श,
वे मात्र शब्द नहीं, जीवन होते हैं,
जिससे एक नहीं, कई जीवन जीए जा सकते हैं;

तुमने तो कभी, बस, इतना ही कहा था,
कि ‘तुम्हारी हाथों में मेरे हाथ हैं’
मैं कोसों दूर वही स्पर्श ले बैठा,
मैं कोसों दूर, एक वही स्पर्श जीता हूँ।

‘Ek Wahi Sparsh’ Hindi Poem by Vijay Bagchi

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: