मिशन मंगल


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हमारी कंपनी के किसी भी प्रमोशनल वीडियो में, ऑफिस या एड की फोटोज से आप जानेंगे कि यहाँ जेंडर रेशियो पाँच महिलाओं पे एक पुरुष है, विकिपीडिया से आप जानेंगे कि टोटल वर्कफोर्स में सिर्फ 5% महिलाएँ ही हैं।

हाथी के खाने और दिखाने के दाँतों में इतना अंतर क्यों?

उत्तर-इट इस कूल, अट्रैक्टिव लगता है, नारी शक्ति को सलाम।

मिशन मंगल देख के आप जानेंगे कि पाँच महिलाओं और दो पुरुषों ने अपने दम पे, बिना किसी सहयोग के मंगलयान को मार्स पे पहुँचा दिया, डिटेल्स में जाएंगे तो आप जानेंगे कि इसमें इसरो के हर एक व्यक्ति की कड़ी मेहनत शामिल थी। (जो डायरेक्टर ने फुट-नोट की तरह एक लाइन में बताया भी है) क्यों? उत्तर ऊपर है।

2010 के GSLV लांच में कॉम्प्लीकेशन्स के बाद मिशन डायरेक्टर राकेश धवन (अक्षय कुमार) को टाइम पास के लिए मार्स मिशन में डाल दिया जाता है। उनकी सेकंड-इन-कमांड तारा शिंदे (विद्या बालन) भी इस मिशन में इनके साथ हैं। एक खंडहर जैसी इमारत को इसरो के मार्स मिशन का हेडक्वार्टर बनाया जाता है और एकदम नई और यंग टीम दी जाती है। जबर्दस्ती का नासा रिटर्न्ड एक विलन भी है, जिसका काम सिर्फ मज़ाक उड़ाना है। (उसकी पावर्स और रैंक क्या है, पता नहीं लगता, क्योंकि वो सबको गरिया सकता है सब उसको गरिया सकते हैं।)

पूड़ी बनाते वक़्त तारा को यूरेका मोमेंट आता है और मिशन मंगल स्टार्ट हो जाता है। इसके बाद टीम बनती है, सबकी अपनी पर्सनल प्रॉबलम्स हैं पर इन सबको पार कर मिशन टीम और भारत , स्पेस और मार्स की दुनिया पे एक लंबी छलांग लगाते हैं।

फ़िल्म में जबरदस्त कास्ट है। विद्या बालन फ़िल्म की मुख्य हीरो हैं, अक्षय कुमार कैटेलिस्ट। बाकी सब बढ़िया एक्टर्स।

कहानी अपने आप में चमत्कारी और सुपर इंस्पायरिंग है। हालांकि स्क्रीनप्ले एवरेज है और स्वन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य में देशभक्ति में रंगा हुआ है। टीम मेंबर्स की पर्सनल लाइफ को अच्छे से मिक्स कर और भी कई टॉपिक उठाये गए हैं पर उससे कैनवास इतना बड़ा हो गया है कि उसके साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया है।

छोटे छोटे आइडियाज को जोड़ के पूरे मिशन को जुगाड़ जैसा दिखाया गया है। इसरो के पास इतना कम बजट था कि सफाई, झाड़ू पोंछा, रंगाई पुताई भी स्पेस साइंटिस्ट्स को ही करनी पड़ती है। चीजों को, डायलॉग्स को, ओवर ड्रामाटिक बनाया गया है। इसलिए इतना शानदार और काम्प्लेक्स मिशन सिर्फ एवरेज रह गया है।

ये मूवी अच्छी है पर बहुत अच्छी नहीं। तो फिर बुरा क्यों फील हो रहा है। ऐसे समझिए IIT के बंदे की 4 लाख की नौकरी लगती है तो वो बेवकूफ लगता है और UPTU के सड़कछाप प्राइवेट कॉलेज से किसी को 4 लाख का पैकेज मिल जाए तो वो जीनियस होता है।

बाकी एक्टर्स एवरेज कांसेप्ट पे एवरेज मूवी बनाते हैं, अक्षय कुमार बढ़िया कांसेप्ट पे एवरेज मूवी।

मंगलयान मिशन से ज्यादा टाइट फ़िल्म की टाइम लाइन थी। 5 नवंबर (मंगलयान के ऑर्बिट पे पहुँचने की डेट) को मूवी की घोषणा , फिर 15 अगस्त तक रिलीज (सर, अगर हमने ये टाइम मिस कर दिया तो अगला मौका 5 महीने बाद 26 जनवरी को ही आ सकता है)।

बॉलीवुड बायोग्राफिकल फिल्म्स में काफी पीछे है (क्योंकि अच्छी मूवीज को अभी भी हम सिर्फ सम्मान दे पाते है बॉक्स ऑफिस सक्सेस नहीं)। हमारी कहानियाँ भावनाओं पे आधारित होती हैं जिसमें तकनीकी पहलू को लगभग नकार दिया जाता है। टेक्निकल मूवीज में डायरेक्टर्स दर्शकों को बेवकूफ समझता है और दर्शक डायरेक्टर्स को, और एक एवरेज मूवी का जन्म होता है।

फ़िल्म ठीक है।एंटरटेनिंग। एक बार देखने लायक। फ़िल्म मंगलयान के टोटल बजट से ज्यादा नहीं तो आधा कमाई तो कर ही लेगी।

रेटिंग-3.5 आउट ऑफ 5

नोट – हॉटस्टार पे मंगलयान डॉक्यूमेंट्री और मूवी ‘हिडेन फिगर्स’ भी देख सकते हैं।

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