पेड़ों की मुट्ठियों से छनता है सूरज
कलियों पर जैसे प्रकृति ने
सितारों का आँचल फैलाया हो
उनके भीतर छुपाए गये
हमारे अंतिम प्रेम पत्र
हमारे प्रेमगीतों की मृत्यु है
उनमें लिखे शब्द मेरे दुःखों के बीज
जिनसे अब पहाड़ अंकुरित होने लगे हैं
विदा के वक़्त हमारे आँसू
पँखों की शक्ल में
कलियों पर उग आए थे
कितनी ही कलियाँ जंगल से लापता हो गयी
उन्हें टहनियों से छलांग लगाते
परिंदों से इश्क़ हो गया
हमारे अंतिम प्रेम पत्र
मेरी अंतिम निद्रा की प्यास के रूप में
मेरे गले में अंगारों से दहक रहे हैं
सुनो! बस बहुत हुआ,
तुम आकर अपने होठों से मेरे होठों को
मुखाग्नि दे दो।
‘Mukhagni’ A Hindi Poem by Nandita Sarkar