Author: nandita-sarkar

nandita-sarkar

प्रेम

प्रेम युद्ध नहीं मानता प्रेम दुःख भी नहीं जानता प्रेम को भाषा कहने वाले लोग अभी सम्पूर्ण रूप से सचेत है प्रेम आधिकारिक रूप से हमारी आत्मा की संतुष्टि है

मुखाग्नि

पेड़ों की मुट्ठियों से छनता है सूरज कलियों पर जैसे प्रकृति ने सितारों का आँचल फैलाया हो उनके भीतर छुपाए गये हमारे अंतिम प्रेम पत्र हमारे प्रेमगीतों की मृत्यु है

तुम्हारी नींद और साँझ

फिर से साँझ ने पहनी है तांत की साड़ी अपने कमरबन्द में हरसिंगार का गुच्छा लटकाए साड़ी के पल्लू के कोने पर उसने बांध दिया है पृथ्वी का नीला साम्राज्य

उधेड़बुन

तरकारी काटते वक़्त क्यों नहीं काट देती मैं मन को कचोटती लकीरें जैसे माँ सुखा देती है अचार की बरनियों संग चुप्पियों का आक्रोश जीवन के उधेड़बुन को सुलझाती हुई

ओ पवित्र लड़के

ओ पवित्र लड़के! पीले उपवन की मीठी सुगन्ध सी तुम्हारी आभा चिरकाल तलक मेरे मस्तिष्क में नदी की भाँति प्रवाहित होती रहेगी तुम्हारे अवचेतन मन की झंकृत लड़ियों में मेरी

बोगनवेलिया

जैसे घड़ियों से रिसता है समय वैसे आलिंगन से बहता है प्रेम हज़ारों बार पुकारे जाने के पश्चात चुम्बनों की प्यास जम जाती है होंठों पर मरुस्थल की तरह, समय

शिव!

मेरे अभिव्यक्त अश्रुओं में तुम्हारा निश्छल प्रेम ही है मेरा जीवन और मृत्यु से मुक्त होकर ॐ में लिप्त होना ही मेरे भक्ति का ब्रह्म ज्ञान मेरी तीक्ष्ण इच्छाओं और

सहिष्णुता

मेरे गले में हज़ारों शीशें क़ैद हो गए हैं अब मैं चीख़ नहीं सकती मेरी आँखों में इतनी रोशनियाँ छन कर आयी कि मुझे अँधेरा दिखना बन्द हो गया है

नग्नता

कभी पेड़ों को नग्न होते देखा है? यदि मान ले कि हमारे कृत्य पेड़ हैं तब हमारी अंतरात्मा पतझड़ में पेड़ों की नग्नता देख शर्मसार हो जाएगी हम प्रेम करते

कविताएँ जब अचानक मर जाती हैं

कविताएँ जब अचानक मर जाती हैं जैसे धकेल दिया गया हो किसी ऊँची पहाड़ी से या कर दिया गया हो उसे छिन्न भिन्न आनन फानन में सारे सबूत मिटा दिए

instagram: