नग्नता

कभी पेड़ों को नग्न होते देखा है?
यदि मान ले कि
हमारे कृत्य पेड़ हैं
तब हमारी अंतरात्मा पतझड़ में
पेड़ों की नग्नता देख
शर्मसार हो जाएगी

हम प्रेम करते है
हमें प्रेम है मूसलाधार बारिश के बाद
सोंधी महक से
हमें प्रिय है जनवरी के महीने में
नीले निरभ्र से गिरते रुई के फ़ाहें

हमें प्रेम हैं अपने करीबियों से,
वस्तुओं से, स्थानों से और धर्म से
हम प्रेम में इस प्रकार अंधे हैं
कि हमनें प्रेम के रंग बाँट लिए हैं
हमें प्रेम का पागलपन है

हमारा रक्त नहीं उबलता
यातनाओं की चीख़ पुकार सुन
हमारी आँखें अभ्यस्थ हैं
भूख से बिलखती अंतड़ियां देखने के
हमारी रूह नहीं कांपती
मोमबत्तियों की तरह जलती लाशें देख
हम बेख़ौफ़ हैं दंगों फसादों से

हम एक ऐसे विकट युग में जी रहे हैं
जहाँ सूर्य मर चुका है
हम भागते जा रहे हैं
कीट पतंगों की तरह
कृत्रिम रोशनी की चकाचौंध में
भीतर से खोखलें
परन्तु भाग रहे हैं
और मर खप रहे हैं
अव्वल आने की दौड़ में

हम भूल चुके हैं
रोटी, कपड़ा, मकान,
प्रेम और कविताएँ
सबके हक़ में होनी चाहिए।
हमारे कृत्यों की नग्नता
आसमान छू रही हैं।

नन्दिता सरकार की अन्य रचनाएँ।

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: