मेरे अभिव्यक्त अश्रुओं में
तुम्हारा निश्छल प्रेम ही है
मेरा जीवन और मृत्यु से मुक्त होकर
ॐ में लिप्त होना ही
मेरे भक्ति का ब्रह्म ज्ञान
मेरी तीक्ष्ण इच्छाओं और
हिंसाओं से परे
सम्पूर्ण हूँ मैं
मेरी टहनियाँ, मेरी जड़ें, मेरे पहाड़,
मेरा हर्ष, मेरा दुःख, मेरा सौहार्द
मेरा कुछ भी नहीं
सब तुम हो
तुम सर्वत्र हो
मैं हूँ तुम्हारी प्रतिबिम्ब समान
और जब मैं हो जाऊँगी
अनुपयोगी इस संसार में
मेरी विमुक्तता में एक झरोखा सौंपना
मैं देखूँगी तुम्हारे मंदिरों के बाहर
चीख़ पुकार करती
तुम्हारी ही भीड़ को।
‘Shiv!‘ A Beautiful Hindi Poem By Nandita Sarkar