प्रेम युद्ध नहीं मानता
प्रेम दुःख भी नहीं जानता
प्रेम को भाषा कहने वाले लोग
अभी सम्पूर्ण रूप से सचेत है
प्रेम दुःख भी नहीं जानता
प्रेम को भाषा कहने वाले लोग
अभी सम्पूर्ण रूप से सचेत है
प्रेम आधिकारिक रूप से
हमारी आत्मा की संतुष्टि है
प्रेम देवालय की भीनी सी धुन है
प्रेम के रास्ते पड़ने वाले काँटें
फूलों में परिवर्तित हो गए
और जिन फूलों ने प्रेम न छुआ
वो जीवन भर अभिशप्त रहे
हजारों सूर्य की परिक्रमा पश्चात
प्रेम अगन में वैरागी हो जाना
है प्रेम का सिद्धांत
प्रेम की तपन में
युद्ध, दुःख, पीड़ा भी हो जाते हैं पुलकित
प्रेम की वल्लरी ज्यों लिपटती है देह से
प्रेमियों के उद्दीप्त होंठों पर
खिलते हैं हज़ारों नीलपुष्प
प्रेम का कोई स्मप्रेष्ण नहीं
प्रेम का कोई संविधान नहीं
प्रेम है तो केवल
वैराग्य की प्रकाष्ठा।
‘Prem’ A Hindi Poem by Nandita Sarkar