देखना सीखना हो तो पृथ्वी से सीखना
कैसी तप्त नज़रों से देखती है बादलों को
कि पिघल जाता है आसमान
कैसी तप्त नज़रों से देखती है बादलों को
कि पिघल जाता है आसमान
जो सीखना हो बरसना
तो बादलों से नहीं
किसी रूठी प्रेमिका से सीखना
उसके आगे पानी भरती है सारी बारिशें
उठना सीखना हो
तो दूब से सीखना
ज़मीन से उठते ही
जा बैठती है ईश्वर के माथे
हठ सीखना चाँद से
रोज़ उग आता है अंधियारी रातों में
सृष्टि के प्रारंभ से दे रहा है
अंधकार को चुनौती
और जो सीखना हो प्रेम
तो प्रेम में टूटे शख़्स से सीखना
वही बता सकता है
प्रेम की सबसे सच्ची परिभाषा