घर की छत
को झांक रहा
एक पीपल का पेड़,
को झांक रहा
एक पीपल का पेड़,
अभी दो दिन
पहले ही तो
फूटी हैं कोपलें उसकी,
पिछले दो सालों से
देख रहा हूँ
उसकी
उम्र, कद और काठी,
एक बड़े भारी
मानवनिर्मित पुल
की छाती फाड़ कर
टिका हुआ हैं ।
बरसो से थोड़ा
अदना सा,
दबा हुआ सा
जी रहा हैं इसी जगह,
न जाने क्या हुआ
अचानक कुछ दिनों से
बांछे खिल आई हैं,
नई डालिया,
नए पत्ते निकल आये हैं,
न जाने
किसकी तलाश में
रूठा था इतने दिनों से
अब आकर मिलता हैं
रोज़ सवेरे
और सांझ ढलते
इसका खिलखिलाना
सुहाना हो गया हैं,
अब ये पीपल
खुश रहने लगा हैं ।
सबके थम जाने के बाद,
ये पड़ोसी पेड़ बड़ा होने लगा हैं ।