टेररिज्म, इंडियन बंधक, इंडियन इटेलेजेंस आदि में शोज और मूवीज की भरमार है इस समय। अभी कुछ दिन पहले प्राइम का ‘द फैमिली मैन’ आया था। अब और नेटलफिक्स का ‘बार्ड ऑफ ब्लड।’
स्टोरी के नाम पे इसे खिचड़ी कहना उचित होगा। आउटलाइन के हिसाब से 4 इंडियन एजेंट्स को रेस्क्यू करना है क्वेटा (पाक) से। हीरो का अपना थोड़ा बैकग्राउंड भी है, जिसमें उसे अपने साथी के कातिल और एजेंसी में ‘मोल’ का पता लगाना है। पर जब कहानी इंडिया से निकल के पाकिस्तान पहुँचती है तो कई चीजों का घालमेल हो कहानी लड़कियों की फ्रेंडशिप जैसी ‘इट्स कॉम्प्लिकेटेड’ हो जाती है। दूसरे एपिसोड से सब कोई इन्वाल्व हो जाता है जैसे चीनी, अफगानी, तालिबानी, हक्कानी, पकिस्तानी, बलोच, BAF, IIW, ISA, वगैरह वगैरह। कुछ देर बाद कहानी बलोचिस्तान ही आज़ादी हो जाती है। सपाट सी चलती कहानी इतने सारे नामों के चलते कंफ्यूजिंग और बोरिंग हो जाती है।
लॉजिक, डायरेक्शन और एक्टिंग के हिसाब से सीरीज एवरेज से नीचे आ जाती है।
एक डायलॉग है ,जहाँ BAF वाली कहती है, “तुम लोग को जब सूट करता है हमें हथियार और फंडिंग देते हो।” इससे तय होता है कि पाकिस्तान के बलोच एरिया की अनरेस्ट में भारत का हाथ है।
एक डायलॉग है जिसमें हीरो कहता है, “बॉस इंटेरोगेशन स्किल देखना चाहता है, तुम कॉम्बेट स्किल दिखा रहे हो।” पूरी सीरीज भर मैं भी इंटेलेजेंस, थ्रिल, ऑपरेशन्स स्किल्स देखना चाह रहा था, पर यहाँ अंडरकवर एजेंट्स भी सीक्रेट ऑपरेशन्स में कॉम्बैट स्किल दिखा रहे हैं। कहीं भी पहुँच जा रहे हैं, खुले में अंधाधुंध गोलियाँ बरसा रहे हैं। इनपुट के लिए कोई मेहनत या अकल की जरूरत नहीं, तुरंत एक वीडियो मिल जाता है फ़ोन पे बस। ईशा जो पहली बार बाहर आईं हैं उन्हें पूरे बलोच और केच एरिया के शॉर्टकट्स पता हैं।
ISA के दो एजेंट्स हैं, उनमें मैन विलन भी है, पर वो पूरे टाइम अपने अड्डे पे बैठे फ़ोन पे ‘वर्क फ्रॉम होम’ स्टाइल में आपरेशन हैंडल कर रहा है, और दूसरी एजेंट्स से इश्क़ फरमा रहा है और दूसरी एजेंट काम के नाम पे बस मौके बेमौके उससे एक दो सवाल पूछ ले रही है।
हाँ, सभी किरदारों द्वारा फालतू की डायलॉग बाजी पुरानी फिल्मों की तरह है, बोरिंग टू डेथ।इन सब का ज़माना जा चुका है।
एक सीन है जहाँ गोलियाँ चल रही हैं हीरो का साथी गाड़ी लेके आता है, पर हीरो बगल में दरवाज़ा खोल के पीछे की सीट पे नहीं बैठता (जबकि पीछे बैठी दूसरी साथी आलरेडी उसके लिए जगह बना के रखी है), बल्कि गोलियों के बीच गाड़ी के आगे के दौड़ के जाके दूसरी साइड में जाके आगे बैठता है। वैसे ही जैसे DDLJ में ‘सिमरन’ गाड़ी पकड़ने के लिए पास से गुजर रहे डब्बे में ना बैठ के दौड़ते हुए अगले दरवाज़े से चढ़ के ट्रैन पकड़ती है
भाषा के नाम पे फ़िल्म बहुभाषी है। हिंदी, खतरनाक उर्दू, पश्तो , इंग्लिश सब।
पश्तो के अत्याधिक इस्तेमाल से सीरीज ‘kite’ फ़िल्म जैसी हो गई है जहाँ समझ नहीं आता कि फ़िल्म देखने आये हैं या पढ़ने। वैसे पश्तो वाले भी अच्छी उर्दू/हिंदी बोल लेते थे।
दूसरे सीजन बनाने के फेर में लास्ट एपिसोड में लगभग खत्म हो चुकी सीरीज में नए एंगल डाल दिये जाते है, जैसे अरुणाचल प्रदेश, डिसग्रसड आर्मी मैन किलर, चीनी एंगल इत्यादि। पर बस भाई इतने में ही हो गया। एक और सीजन नहीं झेला जा सकता।
जिन्हें लगता है कि मैंने बेवजह ‘द फैमिली मैन’ को ज्यादा रेटिंग दे दी है, प्लीज इसे जरूर देख लें कि एवरेज या बिलो एवरेज सीरीज कैसी होती है।
रेटिंग 2 आउट ऑफ 5