सर्दियाँ धीमी गति से आती है।
जैसे,
रेगिस्तान में आता तूफान एक समय बाद
ढक देता है आसमान को ग़ुबार से,
सर्दियाँ भी ओढ़ा देती है एक ठंड की चादर,
पूरे शहर को।
जिसके ऊपर जमती जाती है ओस की बूंदे
और
सोता रहता है शहर गर्म साँसे छोड़ता, उसके नीचे।
सर्दियों का आना,
सबसे पहले महसूस करता है सड़क किनारे सोता बेघर,
जिसकी साँसों से फटी कम्बल में रिसती है जमी ओस,
जिसकी रात गुज़रती है करवटों में,
जो सिमटता चला जाता है अपने से छोटी कम्बल में।
और
सबसे आख़िर में महसूस करता है सर्दियों को
एक बच्चा,
जिसे आग नहीं,
गुब्बारा चाहिए।
‘Sardiyon Ka Aana’ A Hindi Poem by Shubham Ameta