कविताकोश

नग्नता

कभी पेड़ों को नग्न होते देखा है? यदि मान ले कि हमारे कृत्य पेड़ हैं तब हमारी अंतरात्मा पतझड़ में पेड़ों की नग्नता देख शर्मसार हो जाएगी हम प्रेम करते

कविताएँ जब अचानक मर जाती हैं

कविताएँ जब अचानक मर जाती हैं जैसे धकेल दिया गया हो किसी ऊँची पहाड़ी से या कर दिया गया हो उसे छिन्न भिन्न आनन फानन में सारे सबूत मिटा दिए

पृथ्वी की उथल पुथल

प्रतीत होता है मैंने निगल ली है एक समूची पृथ्वी जिसके झरनें बह रहे हैं मेरी रक्तकणिकाओं में जिसके पेड़ उग रहे हैं असंख्य भाव रूपी, जिसके पुष्प खिल रहे

मुर्दा भीड़ का संताप

रोशनी उतर आयी है पेड़ों के ऊपर से नीचे घास पर मेरे तलवों से मेरे ख़ून रिसते होंठों पर, मैं महसूस कर रही हूँ सैकड़ों कीड़े घिसट रहे हैं मेरी

बीमार समय में

एक बूढ़ा सियार हुआँ हुआँ का शोर मचाता है पीछे से लाखों सियार जयकार लगाते हैं छद्म वेश में जो सियारों में शामिल नहीं हैं उनके लिए हस्ताक्षरित सियारी खाल

आधा चाँद माँगता है पूरी रात

पूरी रात के लिए मचलता है आधा समुद्र आधे चाँद को मिलती है पूरी रात आधी पृथ्वी की पूरी रात आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है पूरा सूर्य आधे

एक वृक्ष भी बचा रहे

अंतिम समय जब कोई नहीं जाएगा साथ एक वृक्ष जाएगा अपनी गौरैयों-गिलहरियों से बिछुड़कर साथ जाएगा एक वृक्ष अग्नि में प्रवेश करेगा वही मुझसे पहले   ‘कितनी लकड़ी लगेगी’ शमशान

प्रेम

मेरी आत्मा के माथे पर लंगर डाले पड़े हैं सदियों से तुम्हारे वो चुम्बन जो पूर्ण होने से पहले खींच डाले गए विरह के क्रूर जाल में फंसाकर; मेरा प्रेम

रिक्त स्थान

एक पुरुष ने लिखा दुख और यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गया एक स्त्री ने लिखा दुःख यह उसका दिया एक उलाहना था एक पुरुष लिखता है

कोई मेरे साथ चले

मैंने कब कहा कोई मेरे साथ चले चाहा जरुर! अक्सर दरख्तों के लिये जूते सिलवा लाया और उनके पास खडा रहा वे अपनी हरीयाली अपने फूल फूल पर इतराते अपनी

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