hindwi.org

मकड़ी

अक्सर सुलगने लगती हैं मेरी उंगलियाँ सिगरेट की तरह कुछ स्पर्श धुआं बनकर मेरी आंखों के नीचे बैठ जाते हैं फिर इस काई पर रातें फिसलती रहती हैं फिसलती रहती

अनुवाद

ज़िद करने के बाद माँ से मिली दो अठन्नियों में से एक मैं अक्सर खो देता था घर से दुकान के रास्ते में हाँ! मैं आसमान देखकर चलता था, हूँ

गिरती हुई चीजों के विरुद्ध

शाम होते ही लौटना था पर रात गिर आई रात कुछ उस तरह गिरी मेरे सामने जैसे सड़क पर गिर पड़ा हो पेड़ रात को कभी मैंने इस तरह गिरते

इतना मुश्किल भी नहीं था

इतना मुश्किल भी नही था यादों को बाँध लेना शू लेस के साथ और जॉगिंग करते हुये झाड़ देना मन से झन्न झन्न करते दुखों का कॉलेस्ट्रॉल इतना मुश्किल भी

अलबत्ता प्रेम

ईश्वर ने सोचा यह सुंदर है नदी ने सोचा यह पीछे छूटी स्मृतियों की टीस है पर्वत ने सोचा यह गर्व से नीचे देख पाने की कला है मल्लाह ने

आलाप में गिरह

जाने कितनी बार टूटी लय जाने कितनी बार जोड़े सुर हर आलाप में गिरह पड़ी है कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं और कभी बैठे-बैठे ही ढह गए मुक़ाबले में

पितृसत्ता तुम्हारी रीढ़ कौन है

आसमान के घर से एक बड़ा सा पत्थर मोहल्ले के बीचों -बीच गिरा देखते ही देखते वह शीर्ष मंच पर आसीन हो गया औरतें जो साहसी सड़कें बनकर चल रही

प्रेम

प्रेम गहरा होता गया इतना गहरा की अलग होने का डर घर कर गया डर के घर में उम्मीद, अपेक्षा, प्रत्याशा की खिड़कियां हुईं बंदिशों के दरवाज़े में फ़िक्र ने

शब्द

मेरे भीतर उगती हैं नागफ़नी विद्रोह की जैसे उग आती हैं दूब मीलों तक मैं तलवार नहीं रखती न ही कोई बंदूक की गोली मैं रखती हूँ शब्द जो धंसे

बस तेरा नाम ही मुक़म्मल है: गुलज़ार

हिन्दी साहित्य और सिनेमा में जो हैसियत गुलज़ार साहब की है और रही, वैसी किसी की न थी। मतलब सीधा-सीधा कला में दखलंदाज़ी। यानि गीत, कविता, नज़्म, शायरी, कहानी, पटकथा,

instagram: