ईश्वर ने सोचा
यह सुंदर है
नदी ने सोचा
यह पीछे छूटी स्मृतियों की टीस है
पर्वत ने सोचा
यह गर्व से नीचे देख पाने की कला है
मल्लाह ने सोचा
यह आँधियों के लिए गाया गया विदागीत है
चिड़िया ने सोचा
यह आकाश की छाती का बहुवचन है
आदमी ने सोचा
जीवन काटा जा सकता है
स्त्री कुछ सोच न सकी
धम्म से गिर पड़ी
स्त्री के गिरने से
ब्रह्मांड का क़द और ऊँचा हुआ
प्रेम ने
इस ब्रह्मांड को सौ संभावनाएँ दीं
और स्त्रियों को दीं
नर्म हथेलियाँ
दोनों हथेलियों को मिला
गाल के नीचे लगाकर
स्त्रियों को अब
सो जाना चाहिए
कहीं ये नर्म हथेलियाँ
कोई गुनाह न कर बैठें।
-
तीसरी कविता की अनुमति नहीं
₹150.00 -
Sale!
इब्नेबतूती
₹199.00₹128.00 -
Sale!
तुम जहाँ भी हो
₹195.00₹190.00 -
बातों वाली गली
₹150.00
Share
Pin
Tweet
Related
![](https://hindagi.com/wp-content/uploads/2023/10/Hindagi.jpg)
दिल्ली
रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह
![](https://hindagi.com/wp-content/uploads/2023/08/Manipur-Viral-Video.jpg)
अठहत्तर दिन
अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते
![](https://hindagi.com/wp-content/uploads/2023/04/Hindi-Kavita.jpg)
गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
Comments